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दो पैसे ज्यादा के लालच में जाते हैं बाहर, बच्चों के भविष्य की है चिंता

locationशाहडोलPublished: Apr 30, 2020 10:04:42 pm

Submitted by:

shubham singh

जिले में काम नहीं मिलने के साथ कम मिलती है मजदूरी

Majdoor goes out due to lack of work

दो पैसे ज्यादा के लालच में जाते हैं बाहर, बच्चों के भविष्य की है चिंता

शहडोल। अपने गांव और जिले को छोड़कर दो पैसे ज्यादा कमाने के चक्कर में सैकड़ों मजदूर दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने जा रहे हैं। उन्हें कुछ ज्यादा पैसे कमाकर अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने की चिंता है। इस आदिवासी अंचल से हर साल हजारों की संख्या में लोग दूसरे जिले और प्रदेशों में मजदूरी सहित अन्य काम करने के लिए जा रहे हैं। यहां पर उनको न तो काम मिल रहा है और काम भी मिल रहा है तो पैसे बेहद कम मिलते हैं। ऐसे में पलायन उनकी मजबूरी बन गई है। लॉकडाउन में दूसरे प्रदेशों से जिले में आने वाले मजदूरों का कहना है कि दूसरे प्रदेशों में काम करने नहीं जाना चाहते हैं लेकिन मजबूरी में जाना पड़ता है। लॉकडाउन के बाद उन जगहों पर काम फिर से मिलना मुश्किल है लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद माहौल सुधरता है तो फिर से उन जगहों पर काम करने के लिए जाना चाहेंगे।
बच्चों का भविष्य अच्छा चाहते हैं
जिले के गांवों में रहने वाले मजदूर गांव में काम नहीं मिलने के चलते शहर आ रहे हैं। ये कुछ माह काम शहर में तो करते हैं तो कुछ माह दूसरे शहर में काम करने के लिए चले जाते हैं। मैकी, हरदी सहित अन्य गांवों के मजदूरों ने कहा कि गांव में मजदूरी नहीं मिलती है। ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए गांव को मजबूरी में छोडऩा पड़ता है। मजदूरी करके हम लोग चाहते हैं कि हम लोगों का बच्चों का भविष्य बेहतर बनें ताकि वह हम लोगों की तरह मजदूरी नहीं करें। सरकार भले ही मजदूरों के बेहतर जीवन के लिए योजनाएं चलाती है लेकिन हम लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। लॉकडाउन के चलते काम मिलना बंद हो गया है।
इनका कहना है
गांव में रहकर परिवार सहित खुद का पेट पालना बहुत मुश्किल है। इसलिए पलायन करना मजबूरी बन गया है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी गांव में काम नहीं मिल पाएगा। इसलिए बाहर जाना ही पड़ेगा।
सक्खा नायक, निवासी मैकी
इनका कहना है
मजदूरी करके बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल है। इसलिए सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं लेकिन हम उनको मजदूर नहीं बनाएंगे।
पप्पू बैगा, निवासी हरदी

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