विशेषज्ञों और सुविधाओं की कमी, मेडिकल कॉलेज में रैफर के बाद बढ़ जाती हैं मुश्किलें, हायर सेंटर होने से नहीं मिल रही सरकारी एंबुलेंस
प्राइवेट एंबुलेंस संचालकों का जमावड़ा, दो गुना दाम देने मजबूर मरीजों के परिजन
शाहडोल
Published: February 21, 2022 12:25:15 pm
शहडोल. मेडिकल कॉलेज शहडोल में भले ही अलग-अलग विभागों की ओपीडी शुरू कर दी हो लेकिन मरीजों की मुसीबतें कम नहीं हुई हैं। ओपीडी शुरू होने के बाद मरीज भी बड़ी तादाद में यहां इलाज कराने पहुंचने लगे हैं लेकिन अीाी भी कई सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। जिसके चलते हर दिन कोई न मरीज यहां से रेफर हो रहा है। इधर हायर सेंटर से हायर सेंटर मरीज न ले जाने के नियम के अड़ंगे के चलते सरकारी एंबुलेंस भी नहीं मिल रही है। मेडिकल कॉलेज में कई विभागों में सुविधाएं न होने की वजह से रेफर तो कर दे रहे हैं लेकिन एंबुलेंस नहीं दी जा रही है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज से रेफर किए जाने वाले मरीजों के परिजनों को इधर से उधर भटकना पड़ता है। इनकी इस मजबूरी का फायदा मेडिकल कॉलेज कैम्पस में डेरा जमाए बैठे निजी एम्बुेंलस संचालक उठा रहे हैं। कुछ कर्मचारियों की भी गठजोड़ है। हायर सेेंटर के लिए मरीजों के परिजनों से दो गुना किराया वसूला जाता है। मजबूरी में मरीजों के परिजन भी इनका विरोध नहीं कर पाते और उनकी मांग के अनुरूप भुगतान करने के लिए बाध्य होते हैं।
निजी एंबुलेंस का कब्जा, तीन से पांच गुना लेते हैं किराया
मेडिकल कॉलेज में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध न होने की स्थिति में निजी एंबुलेंस संचालकों की चांदी है। मेडिकल कॉलेज कैम्पस व इसके आस-पास इन निजी एम्बुलेंसों का जमावड़ा लगा रहता है। इनमें से कई एंबुलेंस डॉक्टर व स्टाफ की भी बताई जा रही है। मरीजों के परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाकर यह एंबुलेंस संचालक रीवा, जबलपुर, बिलासपुर और नागपुर तक ले जाने के एवज में डेढ़ से दो गुना किराया वसूलते हैं। रीवा जबलपुर के लिए तीन से पांच हजार वसूलते हैं।
पांच जिलों से मरीज आ रहे कॉलेज
जानकारी के अनुसार मेडिकल कॉलेज में मरीजों को समुचित इलाज मिल सके इसे ध्यान में रखते हुए अस्पताल प्रारंभ कर दिया गया है। लगभग लगभग सभी विभागों की ओपीडी भी प्रारंभ हो गई है। ऐसे में पांच से छह जिलो के मरीज यहां इलाज कराने पहुंचते हैं। साथ ही संभागीय मुख्यालय का सबसे बड़ा हायर सेंटर होने की वजह से तीनों जिलों के जिला चिकित्सालय और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रो से मरीज रेफर होने के बाद पहुंचते हैं। इधर एंबुलेंस 108 के भी कई वाहन कंडम होने से बंद पड़े हुए हैं।
पद और खर्च दोनों स्वीकृत नहीं, कैसे बनाएं व्यवस्था
मेडिकल कॉलेज को अभी तक एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाई है। यदि एंबुलेंस मिल भी जाती है तो मेडिकल कॉलेज में न तो एंबुलेंस चालक का पद स्वीकृत है और न ही इसमें लगने वाले ईंधन के लिए कोई प्रावधान है। ऐसे में एंबुलेंस मिल भी जाती है तो उसे चला पाना मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के लिए बड़ा कठिन काम होगा।
शासन से की मांग, एसईसीएल से भी स्वीकृत
मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने शासन से दो एंबुलेंस की मांग की है। साथ ही एसईसीएल से भी मेडिकल कॉलेज के लिए एक एंबुलेंस स्वीकृत है। दस्तावेजों की प्रक्रिया पूरी न हो पाने की वजह से अभी यह सुविधा मेडिकल कॉलेज को नहीं मिल पाई है। जिले में संचालित 108 सेवाओं के भी कई वाहनों में तकनीकि खामियां हैं।
हर दिन यहां से भी रैफर हो रहे मरीज
मेडिकल कॉलेज इलाज में चिकित्सकीय सुविधाएं प्रारंभ कर दी गई है। बावजूद इसके अभी भी यहां हार्ट सहित अन्य विशेषज्ञों का अभाव बना हुआ है। जिसके चलते इन बीमारियों से संबंधित मरीजों को यहां से भी अन्य हायर सेंटर के लिए रेफर किया जा रहा है। हर दिन मरीज यहां से रेफर हो रहे हैं। यहां से मरीजों को रेफर तो कर दिया जा रहा है लेकिन एंबुलेंस न मिल पाने की वजह से मरीजों के परिजनों को मुश्किलों से दो चार होना पड़ता है।
इनका कहना है
रेफर होने वाले मरीजों को परेशानी हो रही है। एंबुलेंस के लिए शासन से मांग की है और प्रभारी मंत्री के समक्ष भी मांग रखी थी। एसईसीएल से भी एंबुलेंस मिलनी है जिसके लिए प्रक्रिया चल रही है। मेडिकल कॉलेज में एंबुलेंस चालक के लिए कोई पद स्वीकृत नहीं होने और एक्सपेंस का कोई प्रावधान न होने की वजह से भी परेशानी हो रही है।
डॉ. मिलिन्द शिरालकर, डीन मेडिकल कॉलेज शहडोल।

विशेषज्ञों और सुविधाओं की कमी, मेडिकल कॉलेज में रैफर के बाद बढ़ जाती हैं मुश्किलें, हायर सेंटर होने से नहीं मिल रही सरकारी एंबुलेंस
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