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वैज्ञानिक की नौकरी छोड़ी और बन गए शिक्षक

locationशाहडोलPublished: Sep 05, 2018 08:32:28 pm

Submitted by:

shivmangal singh

नि:स्वार्थ भावना से कर रहे विद्या की सेवा

shahdol

Left the scientific job and became a teacher

शहडोल. किसी भी व्यक्ति द्वारा अर्जित की गई सबसे बड़ी सम्पत्ति शिक्षा की होती है। जिसे आप किसी को भी दे सकते हैं और आपके पास से कुछ भी नहीं जाता है, बल्कि बढ़ता ही है। शिक्षा का सबसे बड़ा स्त्रोत शिक्षकों को माना जाता है। हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पूर्व काल से लेकर वर्तमान समय तक समाज में शिक्षकों को विशेष स्थान दिया गया है। शिक्षकों ने कई लोगों को पढ़ाया और उन्हें उनके मुकाम तक पहुँचाया है। कुछ शिक्षक ऐसे भी होते हैं, जिन्होने अपने जीवन में नि:स्वार्थ भावना से विद्या की सेवा की है। इनका उल्लेख शिक्षक दिवस पर किया जाना इसलिए जरूरी है कि उनकी नि:स्वार्थ भावना अन्य लोगों के समक्ष उदाहरण के रूप में पेश हो सके और लोग उनकी प्रेरणा से समाज को बेहतर दिशा दे सकें। आज हम अपने पाठकों को जिले कुछ ऐसे ही शिक्षकों के बारे में जानकारी दे रहे, जिन्होंने अपने नि:स्वार्थ भावना और बुलंद हौसलों से शिक्षकीय कार्य को एक नया आयाम दिया है और उनकी त्याग और तपस्या से बच्चों का भविष्य संवर रहा है। संभागीय मुख्यालय में संचालित शासकीय आवासीय कन्या शिक्षा परिसर के प्रथम श्रेणी प्राचार्य रणजीत ङ्क्षसह धुर्वे पर विद्या देवी की सेवा का जुनून कुछ इस कदर हॉवी रहा कि वह ज्यादा वेतन वाली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक की नौकरी छोडक़र शिक्षक की नौकरी करना ज्यादा उचित समझा। आज से तीस वर्ष पूर्व वैज्ञानिक पद पर उन्हे ढ़ाई हजार रुपए प्रति माह मिलते थे, मगर उन्होने 1640 रुपए प्रति माह वाली शिक्षक की नौकरी को महत्व दिया। तीस वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने शिक्षकीय कार्य के अलावा स्कूल में स्वेच्छा से बच्चों को आदिवासी अंचल के गीत-संगीत का भी ज्ञान दिया और अच्छी हैण्ड राइटिंग के गुर भी बताए। वह आदिवासी वाद्य यंत्र मादल व ढ़ोलक और आर्गन का वादन करते हैं। 2008 में बलबहरा हाई स्कूल में हाई एवं हायर सेकेण्ड्री स्कूल में शत-प्रतिशत रिजल्ट देने के लिए उन्हे सीएम पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। कन्या शिक्षा परिसर के स्टाफ ने बताया कि प्राचार्य श्री धुर्वे विद्यार्थियों व विद्यालय की समस्यों के निराकरण के लिए कभी भी सरकारी बजट का इंतजार नहीं करते बल्कि अपने वेतन से राशि खर्च कर समस्या का त्वरित निदान कर देते हैं।
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