रथ यात्रा परंपरा सवा सौ साल पुरानी
मोहनराम तालाब मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की परंपरा लगभग सवा सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर यहां भी भगवान जगन्नाथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। नगर भ्रमण के बाद वह अपनी जनक पुरी यानी पंचायती मंदिर पहुंचते हैं। जहां दो दिन विश्राम के बाद वह अपने धाम लौटते हैं। मोहनराम तालाब मंदिर के ट्रस्टी लवकुश शास्त्री की माने तो पहले भगवान की जनक पुरी कहीं दूसरी जगह थी। लेकिन बाद में उसे बदलकर पंचायती मंदिर में स्थान दिया गया। तब से लेकर अभी तक पंचायती मंदिर को ही भगवान जगन्नाथ की जनकपुरी के रूप में जाना जाता है।
डेढ़ सौ वर्ष पूराना है मंदिर का इतिहास
जानकारों की माने तो मोहन राम तालाब मंदिर का इतिहास लगभग डेढ सौ वर्ष पूराना है। जिसका निर्माण अमरपाटन के मोहन राम पाण्डेय द्वारा कराया गया था। भगवान की प्रेरणा से उनके द्वारा उक्त मंदिर व तालाबों का निर्माण कराया गया। इसके बाद यहां पर भगवान नारायण, राम दरबार व जगन्नाथ स्वामी की स्थापना कराई गई। मंदिर निर्माण व भगवान की स्थापना के कुछ वर्ष बाद से ही भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा प्रारंभ की गई। यह परंपरा तब से अनवरत चली आ रही है। पहले यह यात्रा कुछ दूर तक ही जाती थी। अब यह लगभग पूरा नगर भ्रमण करती है।