शाहडोल

मध्यप्रदेश में यहां सैकड़ों महिलाओं को घोषित कर दिया है डायन, ये बड़ी हस्ती भी उठा चुकी हैं मुद्दा

शुभ कार्य से रखते हैं दूर

शाहडोलMar 14, 2018 / 04:52 pm

shivmangal singh

शहडोल- मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और पत्नी अमृता सिंह के नमामि देवी नर्वेदे की तर्ज पर किए जा रहे मां नर्मदा की परिक्रमा के दौेरान कई खट्टे मीठे अनुभव सामने आए है। आध्यात्मिक नर्मदा यात्रा से गुजरते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता singh की नर्मदा किनारे बसे आदिवासी गांवों में फैले अंधविश्वास, लाडलियों के साथ परायापन और कुरीतियों को देख और सुनकर उनकी आंखे डबडबा आई।

अमृता ने नर्मदा यात्रा के दौरान राजगढ़ और शाजापुर के 12 गांवों की कुरीतियों को उजागर किया है। अमृता के अनुसार स्थानीय पाटीदार समाज ने, कभी किसी पीढ़ी में एक महिला को डायन घोषित कर दिया था।

फिर उससे पैदा हुई बच्ची भी डायन हुई। बच्ची से पैदा हुई लड़कियां भी डायन ही कहलाती गईं। आज आलम ये है कि राजगढ़ और शाजापुर के 12 गाँवों में करीबन 500 महिलाएं डायन प्रथा की शिकार हैं। घर के लोग इनके हाथ का बनाया खाना नहीं खाते, शुभ कार्यों से दूर रखते हैं।

दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता सिंह इन दिनों अपने पति के साथ Narmada यात्रा पर हैं, जहां वो नर्मदा परिक्रमा के दौरान कई गांव, आदिवासी इलाकों से गुजर रही हैं, जहां-जहां जा रही हैं वहां की कुरीतियों को उजागर कर रही हैं। अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर भी डाल रही हैं। सोशल मीडिया पर गांव-गरीबी और गलियों की दुर्दशा को पल-पल अपडेट भी कर रहीं हैं। यात्रा के दौरान नर्मदा किनारे बसे आदिवासी गांवों को जकड़े अंधविश्वास, लाडलियों के साथ परायापन, कुरीतियां और सरकार की कमियों को भी उजागर कर रही हैं।

वो सोशल मीडिया में बता रही हैं कि किस तरह आदिवासी आज भी पिछड़ेपन से गुजर रहे हैं। गांवों की हकीकत बयां कर रही हैं कि गर्मी के दिनों में पानी के लिए किस तरह त्राहि- त्राहि मचती है और ग्रामीण झिरिया और नालों पर प्यास बुझाने के लिए निर्भर रहते हैं। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बारिश के वक्त पहुंचना मुश्किल है। इतना ही नहीं यात्रा के अनुभवों के किस्सों को भी फेसबुक में बता रही हैं।

अमृता सिंह नर्मदा यात्रा के दौरान आदिवासी समाज से काफी जुड़ गई हैं। सोशल मीडिया फेसबुक पर आदिवासी महिलाओं से जुड़े कई पोस्ट साझा किया है। जिसमें अमृता ने कहा कि आदिवासी समाज प्रेम के तारों को जोर से पकड़ रखा है।

कई जगहों में आदिवासियों के साथ नृत्य में दिग्विजय और अमृता जमकर थिरकते नजर आ रहे हैं। अमृता ने साझा किया है कि इतर, गोंड, भील, भिलाला, कोरकू जनजातियां विशेष सांस्कृतिक रिवाजों के साथ देश की वृहद पहचान में शामिल हो रही हैं। आदिवासी इलाकों में कहीं-कहीं शिक्षा का घोर अभाव है। बहुसंख्य आदिवासी आबादी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में काम के लिए पलायन कर रही है। झाबुआ, अलीराजपुर और नंदुरबार के गरीब आदिवासी गुजरात में जगह-जगह मजदूरी करते मिले। खेती के सीजन में 50 फीसदी आदिवासी गांव खाली हो जाते हैं।

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