थानेदार को दिया था स्वप्न
ऐसी अवधारणा हैं कि अंग्रेजी हुकुमत में जैतपुर के थानेदार रहे नर्वदा प्रसाद श्रीवास्तव ने इस स्थान की खोज की थी। जिन्हे स्वप्न में इस स्थान में शिवलिंग होने की जानकारी हुई थी। जिसके बाद उन्होने काफी प्रयास किया लेकिन शिवलिंग का कहीं कोई पता नही चला। जिसके बाद उनके द्वारा वहीं समीप ही भोलेनाथ की प्रतिमा रखकर उनकी पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी गई। जिसके कुछ दिन बाद फिर से स्वप्न में उक्त स्थान के विषय में जानकारी हुई। जिसके बाद उन्होने यहां पर साफ-सफाई व खुदाई कि तो इस कुण्ड में शिवलिंग व मां पार्वती की लगभग ढ़ाई फिट लंबी प्रतिमा स्थापित मिली। इसके चारो तरफ चिकने पत्थर है जिनमें कहीं कोई निशान नही हैं।
ऐसी अवधारणा हैं कि अंग्रेजी हुकुमत में जैतपुर के थानेदार रहे नर्वदा प्रसाद श्रीवास्तव ने इस स्थान की खोज की थी। जिन्हे स्वप्न में इस स्थान में शिवलिंग होने की जानकारी हुई थी। जिसके बाद उन्होने काफी प्रयास किया लेकिन शिवलिंग का कहीं कोई पता नही चला। जिसके बाद उनके द्वारा वहीं समीप ही भोलेनाथ की प्रतिमा रखकर उनकी पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी गई। जिसके कुछ दिन बाद फिर से स्वप्न में उक्त स्थान के विषय में जानकारी हुई। जिसके बाद उन्होने यहां पर साफ-सफाई व खुदाई कि तो इस कुण्ड में शिवलिंग व मां पार्वती की लगभग ढ़ाई फिट लंबी प्रतिमा स्थापित मिली। इसके चारो तरफ चिकने पत्थर है जिनमें कहीं कोई निशान नही हैं।
थाना प्रभारी करते हैं पहली पूजा
इस स्थान की सबसे खास बात यह भी है कि मकर संक्राति के दिन यहां सबसे पहली पूजा थाना प्रभारी के हाथो ही होती है। जानकारों की माने तो यहां स्व. पं. सीताराम शर्मा राजगुरु थे्। वही यहां पर पूजा पाठ कराते थे। जिनके स्वर्गवास के बाद अब उनके वंशज पूजा पाठ कराते हैं। फिलहाल इस रहस्यमयी स्थान में मकर संक्रांति के अवसर पर विजय प्रसाद शर्मा द्वारा पूजा पाठ कराई जाती है।
इस स्थान की सबसे खास बात यह भी है कि मकर संक्राति के दिन यहां सबसे पहली पूजा थाना प्रभारी के हाथो ही होती है। जानकारों की माने तो यहां स्व. पं. सीताराम शर्मा राजगुरु थे्। वही यहां पर पूजा पाठ कराते थे। जिनके स्वर्गवास के बाद अब उनके वंशज पूजा पाठ कराते हैं। फिलहाल इस रहस्यमयी स्थान में मकर संक्रांति के अवसर पर विजय प्रसाद शर्मा द्वारा पूजा पाठ कराई जाती है।