मजबूरी नहीं मजबूती का नाम है महात्मा गांधी : राजा पटेरिया
शाहडोलPublished: Feb 16, 2020 05:33:52 pm
पं. एसएन शुक्ल विश्वविद्यालय में गांधी दर्शन पर हुआ व्याख्यान
मजबूरी नहीं मजबूती का नाम है महात्मा गांधी : राजा पटेरिया
शहडोल. गांधी निर्बलता या विवशता का प्रतीक न होकर दृढ़ता और नैतिकता का प्रतीक है। गांधी ने स्त्री अस्मता, युवाओं की राजनीति में सकारात्मक भूमिका सत्ता के दमनात्मक चरित्र के शांति पूर्ण विरोध को राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान चरितार्थ करके दिखाया है। गांधी जी का अनुशरण अन्य देशों में किया जाता है। जहां हिटलर तैसे शासक हुए वहां भी गांधी वादी विचारधारा को मानन वाले लोग उनके बताए हुए रास्ते में चलकर लड़ाई लडते हैं। हमारे देश में महात्मा गांधी को पूजते सब हैं लेकिन उन्हे जानता कोई नहीं है। उक्त विचार शनिवार को पं. एस एन शुक्ल विवि में गांधी चेयर के तत्वाधान में गांधी दर्शन पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री राजा पटेरिया ने व्यक्त किए। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में राम गोपाल पाण्डेय, कुलपति प्रो. मुकेश तिवारी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता राजा पटेरिया पूर्व मंत्री ने गांधी जी को पूज्य मानने के स्थान पर उनके विचारों को आत्मसात करने की बात कही। उन्होने साउथ आफ्रीका में युवाओं को लेकर बने कानून के विरोध को लेकर गांधी जी के द्वारा किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही अपने देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी द्वारा किए गए आंदोलनों व संघर्षो का विस्तार से वर्णन किया। गांधी जी ने अंन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के नैतिक मूल्यों के स्थापना की जो छाप छोंड़ी है वह सदियों तक अमर रहेगी। उन्होने हर वर्ग की समस्याओं के समाधान का रास्ता निकाला है। उनके द्वारा जिन हथियारों का इजात किया था उसी के दम पर हमारे देश को आजादी मिल पाई। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रामगोपाल पाण्डेय ने अपने संबोधन में गाँधी जी के ट्रस्टीशिप की अवधारणा के व्यापक सामाजिक सरोकार पर महत्व दिया। श्रमिक कल्याण हेतु स्वतंत्रता पूर्व गाँधी जी के प्रयासों और स्वतंत्र भारत के श्रम कानूनों में गाँधी को पंच निर्णय व न्यूनतम पारिश्रमिक अवधारणों के प्रभावों का उल्लेख किया। गांधी जी ने श्रमिकों के बीच काम किया। उनके समय में भी समस्याओं को लेकर हड़ताल हुई, तालाबंदी हुई लेकिन कहीं विवाद या फिर शासकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी स्थिति निर्मित नहीं हुई। अहमदाबाद में श्रमिकों के लिए गांधी ने लड़ाई लड़ी। उनकी जो अवधारणा थी वह आज के श्रमकानून में समाहित किया गया है। कार्यक्रम में डॉ. विनय कुमार सिंह, गांधी चेयर की सदस्य डॉ. गीता सराफ , गाँधी चेयर की सचिव राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ. चेतना सिंह, डॉ. मो. स्वालकीन खान, डॉ. प्रमोद पाण्डेय, डॉ. संगीत मसी, डॉ. सुरभि गर्दे, डॉ. तारामणि श्रीवास्तव, डॉ. नीलमणि दुबे, डॉ. आरती झा, डॉ. नीलिमा खरे, डॉ. एस. के. दुबे, डॉ. आनन्द मसी, डॉ. अमित निगम, डॉ. महेन्द्र भटनागर एवं अतिथि विद्वान डॉ. संजली गुप्ता, श्री गोपाल सिंह एवं छात्र शन्नू खान, दीपा शर्मा आदि उपस्थित रहे।