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मां..मुझे जीना है..मां..प्लीज मां..मुझे बचा लो..

locationशाहडोलPublished: Mar 21, 2016 12:11:00 pm

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Shahdol online

लीवर की बीमारी से जूझ रही संजना की जान खतरे में, आर्थिक तंगी से जूझ रहा परिवार

sanjna

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शहडोल. 10 साल की मासूम संजना एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है। उसे अभी ठीक तरीके से लीवर के बारे में ही जानकारी नहीं, लेकिन मोहल्ले में सभी बच्चों से कहती फिरती है कि मेरे लीवर खराब हो गए हैं, उन्हें बदलवाना है। पापा के पास रुपए नहीं है, मम्मी रोती है। हमारे पास जब भी पैसा आएगा, पापा के साथ ट्रेन में चढ़कर नागपुर जाऊंगी, ऑपरेशन कराने। इसके बाद फिर वह मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल में जुट जाती है। यह वाक्या बुढ़ार से लगे खन्नाथ ग्राम पंचायत अंतर्गत आने वाले ग्राम नौगांव का है। यहां रहने वाले राजेंद्र यादव की दस वर्षीय पुत्री पेट की गंभीर बीमारी से जूझ रही है। परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। उसके पास बेटी के इलाज के लिए राशि तक नहीं है। पिता अभी किसी तरह कर्ज लेकर इलाज करा रहा था, लेकिन अब आर्थिक जड़ें कमजोर होने के कारण वह टूट रहा है।

8 दिन के भीतर ऑपरेशन जरूरी
नौगांव निवासी राजेंद्र यादव ने बताया कि पिछले पांच सालों से वह अपनी बच्ची का इलाज शहडोल में एक शिशु रोग विशेषज्ञ के यहां करा रहा था। अचानक तबियत बिगडऩे से परिजनों की सलाह पर वह अपनी बेटी को लेकर नागपुर के एक निजी अस्पताल पहुंचा। वहां डॉक्टरों ने परीक्षण कर बताया कि 8 दिनों के भीतर पीडि़ता का ऑपरेशन करना जरूरी है। यदि समय रहते ऑपरेशन नहीं हुआ तो संजना की जान भी जा सकती है। लाचार पिता ने डॉक्टरों से एक माह का समय मांगा लेकिन मजबूर विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए।

खेल-खेल में करती है खून की उल्टी
संजना की मां मनीषा यादव ने बताया कि वह पिछले एक माह से स्कूल भी नहीं जा पा रही है। हालत गंभीर होने के कारण उसे आराम करने की सलाह दी गई है। इसके बाद भी वह नहीं मानती तो यहीं घर पर मोहल्ले के बच्चों के साथ उसे खेलने का मौका देते हैं, लेकिन ज्यादा भाग दौड़ करने के बाद उसे अचानक खून की उल्टियां होने लगती हैं। खांसी के साथ अक्सर इस प्रकार की स्थिति बनती है। जिस कारण हम और भयभीत हैं।

मजदूरी के भरोसे चल रहा परिवार
राजेंद्र यादव का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। वह खुद टाइल्स लगाने का कार्य मजदूरी के रूप में करता है। संजना की दो छोटी बहनें और एक भाई है। इन चालों के पालन की जिम्मेदारी राजेंद्र के ऊपर है। पिछले पांच सालों से वह लगातार संजना के इलाज में राशि खर्च करता आया है। जिस कारण अब वह ऑपरेशन के लिए राशि नहीं जुटा पा रहा है।

नहीं मिल पा रही आर्थिक मदद
यादव परिवार के घर की बड़ी बेटी है संजना। गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा पांचवीं की पढ़ाई करने वाली संजना के लिए कोई भी मदद को हाथ बढ़ाने तैयार नहीं हो रहा है। 8 दिन के भीतर ऑपरेशन कराना जरूरी है। डॉक्टरों की यह बात संजना के माता-पिता को जीने नहीं दे रही है। परेशान पिता कभी स्थानीय जनप्रतिनिधियों के चक्कर काट रहा है तो कभी अधिकारियों के, लेकिन अभी तक उसे आश्वासन के सिवाय कुछ हाथ नहीं लग सका है।

पापा देखना मैं डॉक्टर बनकर फ्री में करूंगी इलाज
घर में परिजनों को परेशान देख, संजना खुद अपने माता-पिता को हिम्मत दे रही है। खुद डॉक्टर बनने का सपना संजाये हुए संजना अपने पिता से कहती है कि ‘पापा देखना मैं बड़ी होकर खुद डॉक्टर बनूंगी, और सभी गरीब लोगों का फ्री में इलाज करूंगी, आप परेशान मत हो बस कुछ समय की बात हैÓ। इनता कहते-कहते खुद संजना की आंखे भर आती हैं। पिता राजेंद्र ने बताया कि नागपुर और शहडोल में अक्सर डॉक्टरों ने संजना के सामने ही सारी स्थिति बताई, जिस कारण वह अपनी बीमारी को लेकर तथ्यों को समझती है।
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