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संक्रमण के बीच गांव लौटे मजदूरों को मदद की दरकार, रोजगार का संकट, फिर पलायन करेंगे मजदूर

locationशाहडोलPublished: Sep 20, 2020 12:39:02 pm

Submitted by:

Ramashankar mishra

झूठे साबित हो रहे सरकार के वायदे, परिवार का पेट पालना हो रहा मुश्किल

संक्रमण के बीच गांव लौटे मजदूरों को मदद की दरकार, रोजगार का संकट, फिर पलायन करेंगे मजदूर

संक्रमण के बीच गांव लौटे मजदूरों को मदद की दरकार, रोजगार का संकट, फिर पलायन करेंगे मजदूर

शहडोल. कोरोना संक्रमण के बीच गांव लौटे मजदूरों को रोजगार का बड़ा संकट है। सरकार भले ही तमाम वादे कर रही हो लेकिन मैदानी हकीकत एकदम अलग है। मजदूर रोजगार के लिए भटक रहे हैं। घरों में बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। मजदूर कहते हैं, संक्रमण के बीच फिर से महानगरों के लिए पलायन कर जाएंगे। गांव में रोजगार नहीं मिल रहा है। परिवार दाने- दाने को मोहताज हो रहा है।
मनरेगा में गिनती के दिन काम, परिवार चलाना मुश्किल
रसमोहनी बुढ़ार घोघरी सगरा टोला के रामकुमार बैगा स्थानीय स्तर पर रोजगार न मिलने से पिछले 10 साल से दूसरे प्रांत जाकर मजदूरी कर रहे हैं। रामकुमार बताते हैं, कोरोना में सब काम छूट गया था। गांव आए तो लोग कहने लगे बैगाओं के लिए सरकार खूब काम कर रही है। मदद भी मिल जाएगी लेकिन यहां तो मजदूरी के लिए भटकना पड़ रहा है। महाराष्ट्र और दिल्ली जाकर हर माह 12 से 15 हजार रुपए कमा लेते थे लेकिन गांव लौटने के बाद कोई काम नहीं मिल रहा है। गांव में भी मनरेगा का काम नहीं मिला है। थोड़ा बहुत राशन मिल जाता है लेकिन परिवार में माह के लिए नहीं होता है। गांव में पैसा कमाना मुश्किल है।
ग्रामीण बोले- स्थितियां सुधरीं तो फिर चले जाएंगे महाराष्ट्र
अनूपपुर के दैखल गांव में कोरोना संकट में महाराष्ट्र से वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को रोजगार न मिलने से परिवार में बड़ा आर्थिक संकट है। पलायन के बाद लौटे परिवारों को खाद्यान्न के अलावा शासकीय स्तर पर आजतक पीएम आवास सहित अन्य सुविधाएं नहीं मिली है। प्रवासी मजदूर गोविंद केवट बताते है कि वे रोजगार की तलाश में साल पूर्व महाराष्ट्र गया था, फैक्ट्री में काम करता था। हर माह 12 हजार रुपए मिल जाते थे लेकिन कोरोना में घर लौटने के बाद हाथ में रोजगार नहीं है। गोंविद बताते हैं कि उनके साथ गांव के प्रदीप केवट, चंद्रप्रकाश केवट, सोनू केवट, सूरज केवट, कमल सिंह, देवनाथ सिंह, अमरनाथ केवट मजदूर गांव लौटे हैं। शुरूआत में ग्राम पंचायत की ओर से मनरेगा के तहत काम दिया गया लेकिन बीच बीच काम बंद हो जाता है। कुछ लोगों को मनरेगा में भी काम नहीं मिला, जो गांवों में मजदूरी कर ली। इससे परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है
लेकिन कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है।

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