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समझाना मुश्किल था, इशारों में दी हिम्मत, तीन घंटे का ऑपरेशन कर दिव्यांग बच्चे को दी नई जिंदगी

locationशाहडोलPublished: Jul 20, 2020 01:06:36 pm

Submitted by:

amaresh singh

भालुओं के हमले से दिव्यांग बालक की टूट गई थी नाक और गाल की हड्डियां, बाहर निकल आई थी आंख

The parents of the child admitted to Jekelon Hospital pleaded

The parents of the child admitted to Jekelon Hospital pleaded

शहडोल। भालुओं के हमले के बाद पाई-पाई जोड़कर गरीब पिता दिव्यांग बच्चे को लेकर इलाज के लिए अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों का दिल पसीज गया। भालुओं के हमले से चेहरे व नाक की हड्डियां टूट चुकी थी। आंख भी बाहर आ गई थी। दिव्यांग बच्चा अपनी पीड़ा भी नहीं साझा कर पा रहा था। उसे डॉक्टर सिर्फ इशारों में समझा रहे थे। पिता के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि किसी बड़े अस्पताल और दूसरे शहर ले जाकर इलाज करा सके। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम ने खुद ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। जिला अस्पताल शहडोल में डॉक्टरों की टीम ने तीन घंटे सर्जरी करते हुए न सिर्फ बच्चे की जान बचाई, बल्कि नाक और चेहरे की टूटी हड्डियों और आंख को दोबारा से ठीक किया। बालक अब पहले से स्वस्थ है। डॉ. नमन अवस्थी के अनुसार, शहडोल के 14 वर्षीय पुष्पराज सिंह पर भालुओं ने हमला कर दिया था। आंख बाहर निकल आई थी। गाल और नाक की हड्डियां टूट गईं थीं। लगातार खून बहने से ऑपरेशन भी मुश्किल हो गया था। रैफर करने पर काफी समय लग जाता और जान को भी खतरा था। बाद में हमने जिला अस्पताल में ही ऑपरेशन किया।
सुन, बोल नहीं पाता था, समझाना मुश्किल था, इशारों में दी हिम्मत
मेडिकल कॉलेज के दंत चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ नमन अवस्थी के अनुसार, बालक दिव्यांग था। सुन और बोल नहीं पाता था। लगातार खून बह रहा था। बालक दर्द से कराह रहा था और लगातार आंसुओं की धार बह रही थी। उसे समझाना मुश्किल था, लेकिन हम सबने इशारों में हिम्मत दी। बालक ऑपरेशन के लिए तैयार हो गया। तीन घंटे ऑपरेशन चला। बीच में दिक्कतें भी आई लेकिन ऑपरेशन सफल रहा।


खराब हो सकती थी आंख, जान को भी था खतरा
डॉक्टरों के अनुसार, बालक का लगातार खून निकलने की वजह से आंख खराब हो सकती थी। आंख का हिस्सा बाहर आ गया था। नाक और गाल की हड्डियां टूट चुकी थी। विभागाध्यक्ष डॉ नमन अवस्थी के साथ डॉ अखिलेश सिंह और डॉ सोमी सोनी के साथ ऑपरेशन शुरू किया। हड्डियों को दोबारा जोड़ा और आंख को दोबारा उसी जगह पर रखकर सही किया। डॉक्टरों के अनुसार, ज्यादा खून निकलने से जान को भी खतरा था। डॉक्टरों का कहना है कि समय पर इलाज नहीं होता तो गाल भी दब सकता था, जिससे बालक कभी खा पी नहीं सकता।


जमापूंजी लेकर पहुंचा था पिता, कहा- ले सब रखकर बेटे को बचा लो
जिला अस्पताल पिता दिव्यांग बच्चे को खून से लथपथ लेकर आया था। पिता जमापूंजी लेकर अस्पताल पहुंचा था। पिता का कहना था कि इतना ही पैसा है। घर पर जरूर आर्थिक तंगी है, दाने-दाने को मोहताज हैं, लेकिन इसे बचा लो। हम दोबारा कमा लेंगे, ये पैसे भी रख लो। बाद में डॉक्टरों ने नि:शुल्क इलाज किया।

मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम लगातार ऐसे गंभीर ऑपरेशन कर रही है। लोगों को राहत मिल रही है। हमारी पूरी कोशिश रहती है कि यहां से रैफर न करना पड़े।
डॉ मिलिन्द्र शिरालकर, डीन
मेडिकल कॉलेज, शहडोल

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