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नहीं मिली राहत तो खुद 85 हजार देकर 29 मजदूर पहुंचे गांव

locationशाहडोलPublished: May 30, 2020 08:52:16 pm

Submitted by:

brijesh sirmour

सांसद से लेकर अधिकारियों तक से की फरियाद,मजदूरों ने लिस्ट तक बनाकर प्रशासन और जनप्रनिनिधियों को भेजा, मांगते रहे मदद

नहीं मिली राहत तो खुद 85 हजार देकर 29 मजदूर पहुंचे गांव

नहीं मिली राहत तो खुद 85 हजार देकर 29 मजदूर पहुंचे गांव

शहडोल. जहां एक ओर शासन एवं प्रशासन स्तर पर मजदूरों को उनके घर तक नि:शुल्क पहुंचाने के लिए अपनी तत्परता का दावा दावा किया जा रहा है । वहीं दूसरी ओर सांसद व अधिकारियों से कई बार फरियाद करने पर राहत नहीं मिलने पर मजदूरों ने पेट काटकर घर परिवार के लिए एकत्र की राशि से बस करके अपने गांव पहुंचने का रास्ता अख्तियार किया। 29 मजदूरों ने 85 हजार रुपए में शहडोल से नफीस ट्रेवल्स की बस मंगवाई और उसमे सवार होकर अपने-अपने गांव पहुंचे। इसमें प्रति मजदूर करीब 2850 रुपए का खर्चा आया। इसके पहले अपने गृह ग्राम से हजार किलोमीटर दूर हरिद्वार में फंसे जिले के सैकड़ों मजदूरों ने अपनी फरियाद सांसद हिमाद्री ङ्क्षसह व जिले कई प्रशासनिक अधिकारियों से की थी। उन्होने मजदूरों की लिस्ट भी भिजवाई थी, मगर शासन एवं प्रशासन के सभी दावे खोखले साबित हुए और मजदूरों को अपने मेहनत की कमाई से घर वापिसी के लिए मजबूर होना पड़ा।
बस से यह मजदूर आए
राजेश यादव बुढऩवाह, मलिक सिंह गोड़ारू, राजकुमार सिंह गोड़ारू, कमल सिंह सरना, छत्रपति ङ्क्षसह गोहपारू, पुष्पेन्द्र ङ्क्षसह सरना, अनिल ङ्क्षसह सरना, सुभाष ङ्क्षसह लमरो, तेजभान ङ्क्षसह करकी, चन्द्रप्रकाश शुक्ल करकी, प्रीति शुक्ला करकी, गणेश सिंह नौगई, कृष्णपाल ङ्क्षसह नौगई, अहिल्या नौगई, अनिल ङ्क्षसह नौगई, नर्बद ङ्क्षसह नौगई, सुन्दर लाल बिजौरी, अंगद प्रसाद सकरिया, संदीप कुमार बढ़ार, दुर्गादास बिजौरी, सूरजकुमार बरबसपुर, शिवम उपाध्याय बिजौरी, रामभवन करपा, विनोद कुमार इटौरा, अमितकुमार इटौरा, शीला यादव, संदीप कुमार, धीरज कुमार और सूर्यप्रकाश शामिल हैं।
पैदल निकले मजदूर अभी नहीं पहुंचे गांव
बताया गया है कि हरिद्वार में लॉकडाउन में आदिवासी अंचल के फंसे करीब डेढ़ सौ मजदूर एक सप्ताह पहले हरिद्वार से शहडोल तक एक हजार किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय करने निकल पड़े थे। जो अभी भी अपने गांव नहीं पहुंचे हैं। मजदूरों के हालात यह रहे कि मजदूरों के पास पैसे भी खतम हो गए थे और दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा था।
मुझे क्वारंटीन नहीं किया
मैं 24 मई को बस से अपने गांव आया। जहां मुझे सीधे घर में आइसोलेट होने को कहा गया। मेरा घर छोटा है। जहां न चाहते हुए भी घर वाले संपर्क में आ जाते है। इसलिए मेरी मांग है कि मुझे गांव के सरकारी कमरे में क्वारंटीन किया जाए, ताकि मेरा परिवार व गांव के लोग सुरक्षित रह सके।
मलिक सिंह धुर्वे, श्रमिक ग्राम गोड़ारू

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