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कुपोषण से भयावह हो रहे हालात, नहीं बनी पेट की दीवार, बाहर निकली आंत

locationशाहडोलPublished: Jun 26, 2018 02:11:20 pm

Submitted by:

Akhilesh Shukla

एसएनसीयू में जिंदगी मौत से जूझ रहा नवजात, हालत गंभीर होने पर जबलपुर रेफर

Not made stomach wall, gutted intestine

कुपोषण से भयावह हो रहे हालात, नहीं बनी पेट की दीवार, बाहर निकली आंत

शहडोल- आदिवासी बहुल गांवों में लडख़ड़ाई स्वास्थ्य सिस्टम की भयावह हकीकत है। जिले के आदिवासी ब्लॉक गोहपारू के मझौली गांव में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। पोषण आहार न मिलने और देखभाल में अनदेखी के चलते गर्भकाल में मासूम के पेट की दीवार ही नहीं बन पाई।

 

पेट के बीच दीवार न बनने से प्रसव होते ही मासूम की आंत और पेट का अंदरूनी हिस्सा बाहर निकल आया है। जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे मासूम को इलाज के लिए जिला अस्पताल के एसएनसीयू में डॉक्टरों ने भर्ती किया है, लेकिन यहां पर भी हालत में सुधार नहीं हो रहा है।

 

डॉक्टरों ने नवजात की नाजुक हालत को देखते हुए जबलपुर रेफर कर दिया है। प्रबंधन के अनुसार प्रसव पीड़ा के बाद गोहपारू क्षेत्र की मझौली गांव निवासी मटरू कोल की पत्नी गुड्डी कोल को प्रसव पीड़ा के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। प्रसूता ने दो दिन पहले मासूम को जन्म दिया। जन्म के दौरान डॉक्टरों ने मासूम को ओमफलसील बीमारी (पेट की दीवार न बनने से आंत और बाकी हिस्सा बाहर आना) पाया। डॉक्टरों की मानें तो गर्भकाल में पोषण आहार की कमी के चलते यह स्थिति बनी है। पोषण आहार न मिलने से गर्भ में नवजात के पेट का हिस्सा विकसित नहीं हो पाया है।


जिला अस्पताल में हर साल 10 से 15 केस

जिला अस्पताल प्रबंधन की मानें तो हर साल 10 से 15 केस जिला अस्पताल पहुंचते हैं। किसी नवजात के बे्रन का हिस्सा नहीं बनता है तो किसी के पेट की दीवार (ओमफलसील) नहीं बनती हैं। कई ऐसे भी केस सामने आते हैं कि मासूम अपंग पैदा होते हैं। पिछले एक साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों को चिह्नित किया गया है, जो पैदा होते ही अपंग थे। विशेषज्ञों की मानें तो गर्भकाल के दौरान प्रसूताओं द्वारा आयरन और फोलिक की दवाइयां न खाने और पोषण आहार न मिलने से यह स्थितियां बन रही हैं।


दो महिलाओं का कराना पड़ा था गर्भपात

आदिवासी अंचलों में कुपोषण की वजह से कोख उजड़ रही है। लगभग एक हफ्ते पहले दो महिलाओं का गर्भपात इसलिए कराना पड़ा था, क्योंकि उनकी कोख में पल रहे शिशुओं के सिर पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए थे। उनके सिरों की मेंढक जैसी आकृति थी। गर्भवतियों की जान को खतरा देखते हुए शहडोल जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने गर्भपात का मशविरा दिया था। आदिवासी अंचल में कुपोषण की स्थिति बेहद भयावह है।


फोन तक नहीं उठाते अफसर

आदिवासी अंचल में मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात हैं। कुपोषण से पूरा अंचल कराह रहा है। पूर्ववर्ती कमिश्नर बीएम शर्मा, रजनीश श्रीवास्तव ने कुपोषण से लडऩे के लिए सरकारी अमले की लगातार मीटिंग लेकर हालात सुधारने का रोडमैप तैयार किया था। इस पूरे मामले में कलेक्टर नरेश पाल ने भी काफी सकारात्मक रुख अपनाया था। कमिश्नर रजनीश श्रीवास्तव ने कुपोषित परिवारों के भरण पोषण और रोजगार मुहैया कराने की पूरी प्लानिंग तैयार की थी। पूर्ववर्ती कमिश्नर ने कुपोषित परिवारों से मुलाकात भी की थी, जिससे उनकी समस्याओं को समझा जा सके। पुराने अफसरों के तबादले के बाद अफसरों और मैदानी अमले में संवादहीनता के हालात हैं। पुरानी सभी योजनाएं ठंडे बस्ते में चलीं गई हैं। शहडोल संभाग में तैनात किए गए नए अफसर तो पत्रकारों तक के फोन उठाने से परहेज करते हैं।


नहीं थी एंबुलेंस, पत्रिका ने की मदद

पिता मटरू कोल मजदूरी करके परिवार का गुजर बसर करता है। प्रसव के बाद मासूम को इस तरह की बीमारी से ग्रसित पाकर पूरे परिवार पर आर्थिक संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। डॉक्टरों ने रेफर किया तो परिजनों के पास किसी तरह का साधन नहीं था और पैसे भी नहीं थे। परिजन मासूम को इलाज के लिए बाहर नहीं ले जाना चाह रहे थे। परिजन एंबुलेंस के लिए भी कोशिश की लेकिन नहीं मिली। बाद में पत्रिका टीम ने अस्पताल प्रबंधन और एंबुलेंस १०८ के प्रबंधक शंकर तिवारी को जानकारी दी। प्रबंधक शंकर तिवारी ने गंभीरता से लेेते हुए नि:शुल्क जबलपुर तक एंबुलेंस उपलब्ध कराई।

 

एक्सपर्ट व्यू- बच सकती है जान, पोषण आहार जरूरी

जिला अस्पताल के सर्जरी स्पेशलिस्ट डॉ राजा शितलानी के अनुसार ओमफलसील अक्सर पोषण आहार और गर्भ के दौरान अनदेखी की वजह से होता है। सरकार कई योजनाएं चला रही हैं लेकिन कई बार परिजन गंभीर नहीं रहते हैं। ओमफलसील में पेट की आंत और बाकी पेट का हिस्सा बाहर आ जाता है। ऐसे मासूमों की जान बचाई जा सकती है। सर्जरी करते हुए पेट के अंदर मासूम की आंत की जाएगी। संभवत कुछ दिन सांस लेने में दिक्कत होगी।

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