क्यों खाए जाते हैं तिल गुड़ के लड्डू
साल की शुरुआत में आने वाला मकर संक्रांति त्यौहार हिन्दुओं का बहुत ही बड़ा पर्व है। इस त्यौहार में लोग काले और सफेद तिल को गुड़ के साथ मिलाकर लड्डे बनातें हैं। यह एक परंपरा है, तो सभी लोग लड्डू खाते हैं। इस परंपरा का खास वैज्ञानिक कारण भी है। जिस मौसम में यह पर्व आता है तब वह सर्दी का मौसम होता है। सर्दी में शरीर में गर्माहट जरुरी होती है, तिल और गुड़ गर्म होते हैं। इसका सेवन करने से ठंड से बचा जा सकता है और शरीर में अंदरुनी गर्मी बनी रहती है।
इसलिए लगाई जाती है नदियों में डुबकी
त्यौहार में नदियों, पोखरों और तालाबों में ढुबकी लगाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। लोग इस दिन नदियों, तालाबों में ढुबकी लगाकर दिन की शुरुआत करते हैं। जब तक लोग ढुबकी नहीं लगाते तब तक खाते-पीते भी नहीं हैं। ठंडे मौसम के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में ढुबकी लगाने का वैज्ञानिक महत्व बताया गया है।
खिचड़ी से पाचन तंत्र होता है मजबूत
पर्व के समय ठंडे मौसम में तिल, गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। शरीर को ऊर्जा मिलती है, जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है। इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, जिससे शरीर हो बैक्टीरिया से लडऩे में मदद करती है।
पतंग उड़ाने का वैज्ञानिक कारण
कुछ क्षेत्रों में इस त्यौहार के दिन पतंग भी उड़ाई जाती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि ठंड के दिनों में हमारी त्वचा रुखी हो जाती है। हम खुली हवा से दूरी बनाते हैं। सर्दी, खांसी को दूर करने के लिए खुली हवा की जरुरत होती है। पतंग उड़ाने के लिए लोग अपनी छतों पर जाते हैं। जहां खुली हवा और धूप मिलती है और लोग स्वस्थ रहते हैं। त्वचा के लिए धूप भी बेहद जरुरी है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं पुत्र के घर जाते हैं। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था।उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाश मय रहती है। इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रुप में पृथ्वी पर आईं थीं और राजा सगर सहित भागीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था।