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सुन्दर शब्दों की एक सुन्दर व्यवस्था है कविता

locationशाहडोलPublished: Feb 19, 2020 10:35:40 pm

Submitted by:

Ramashankar mishra

पं. एसएन शुक्ल विवि में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

सुन्दर शब्दों की एक सुन्दर व्यवस्था है कविता

सुन्दर शब्दों की एक सुन्दर व्यवस्था है कविता

शहडोल. भारतीय काव्य परंपरा व्यापक है, हिन्दी के प्रसिद्ध कवि ने काव्य संग्रह लिखा जो हिन्दी साहित्य में मगध नाम से जाना जाता है। जिसकी एक लाईन है मगध में विचारों की कमी। विचार मौनिक चिंतन प्रक्रिया मात्र है, सोचने समझने की क्रिया मात्र है, विचार आचारण है। भारतीय संस्कृति यह कहती है कि जिसकी करनी में कथनी में अंतर होगा व्यक्ति की वाणी और आचरण में अंतर होगा वह हमारे यहां कभी समाद्रित नहीं हो सकता। महात्मा गांधी को सब संत मानते हैं। पूरे भारतीय मानस की सोच है कि संत वही हो सकता है जिसकी कथनी व करनी एक हो। काव्य सृजन का वैचारिक आधार है, विचार प्रमुख तत्व है। काव्य रचना, समझना और कावय को उपस्थित करना, जैसे ऋषि मंत्रो के दृष्टा थे वैसे कवि अपनी कविता का दृष्टा हो यह बहुत कठिन काम है। विचार की कविता लिखना, खराब कविता लिखना, समकालीन मुक्त छंद की कविता में खराब कविता लिखना आसान है लेकिन एक अच्छी कविता लिखना बहुत कठिन है। सुन्दर शब्दों की एक सुन्दर व्यवस्था कविता है। उक्त विचार मंगलवार को पं. एसएन शुक्ल विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा काव्य सृजन का वैचारिक आधार है विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. दिनेश कुशवाह आचार्य एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी तथा निदेशक केशव शोध-संस्थान ओरछा ने व्यक्त किए। इस अवसर पर कुलपति प्रो. मुकेश कुमार तिवारी, विशिष्ट अतिथि प्रो. ऊषा नीलम प्राचार्य शासकीय इंदिरा गांधी गृह विज्ञान कन्या महाविद्यालय, उमरिया से समाज सेवी संतोष द्विवेदी, प्रो. बिनय कुमार सिंह, प्रो. प्रमोद पाण्डेय, प्रो. नीलमणि द्विवेदी, प्रो. आरती झा, प्रो. आशीष तिवारी सहित अन्य प्रोफेसर व छात्र-छात्रा उपस्थित रहे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उमरिया से आए समाज सेवी संतोष द्विवेदी ने कहा कि
कविता का बहुत बड़ा अवदान है। कविता दूर तक देखने व गहरे देखने व संवदेना की आंखो से चीजों को देखने के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है। कविता काल्पनिक भले होती है पर वह छलना नहीं होती है। कविता कल्पनाशीलता है वह समाज के यथार्थ से ही रस और गंध ग्रहण करती है। विचारों की खुरदुरी भूमि है जब कविता उसमें उतरती है तो वह बहुत सारा रस रसायन, सपनों की आहट और सबसे बड़ी बात सच्चाई का संवेद देती है। सत्य है वही सुन्दर है इसलिए सच को देखने की नई आंख और नई ऊष्मा कविता से मिलती है। कार्यक्रम को प्रो. प्रमोद पाण्डेय, डॉ. विनय सिंह ने भी संबोधित किया।
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