मेडिकल कॉलेज में नहीं है शव वाहन: मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक नागेन्द्र सिंह के अनुसार एंबुलेंस की सुविधा नहीं है और न ही शव वाहन हैं। दो एंबुलेंस दी गई हैं, जिनके रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया की जा रही है। रजिस्ट्रेशन के बाद ही मरीजों को सुविधा दी जाएगी।
इस मामले पर मृतक के बेटे सुंदर का कहना है कि, मां की मौत के बाद उन्होंने शव वाहन के बारे में पता किया, लेकिन अस्पताल में शव वाहन ही नहीं था। ऐसे में प्राइवेट शव वाहन वालों से बात की तो वे शव ले जाने के लिए 5 हजार रुपए मांग रहे थे, लेकिन इतने पैसे उनके पास नहीं थे। काफी मन्नतें करने के बाद भी उनमें से किसी का दिल नहीं पसीजा। तो आखिरकार हम मां का शव बाइक पर रखकर ही ले गए।
जानकारों के अनुसार इसमें सबसे खास बात ये है कि MP में लगातार इस तरह की घटनाये सामने आने के बावजूद सरकार किसी कठोर निर्णय पर आज तक नहीं पहुंच पायी है, तभी तो स्थितियाँ खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। वही यदि इस ओर ध्यान दिया जाता तो इन पर नियंत्रण पाया जा सकता था। वहीं जानकारों का ये भी कहना है कि यदि कहीं किसी मेडिकल कॉलेज में शव वाहन नहीं है, तो उसे उपलब्ध करना भी सरकार का ही काम है। ऐसे में यदि यहां के मेडिकल कॉलेज में शव वाहन नहीं है तो ये भी सरकार की ही विफलता है।
वहीं इस पूरे मामले की जानकारी मुख्यालय पहुंचते ही लगातार आ रहे दबाव के बीच मुख्यालय की ओर से मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों से जवाब मांगा गया है।
साथ ही इस संबंध में जांच के आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। मामले पर अधिकारियों द्वारा लापरवाही छिपाने के लिए इसपर पर्दा डाला जा रहा है। मेडिकल कॉलेज के डीन कहा कि, मृतक के बेटे द्वारा खुद ही शव वाहन लेने से मना किया गया था. हालांकि, शव वाहन अस्पताल के बाहर खड़ा है। मुख्यालय की ओर से यह भी कहा जा रहा है कि अगर प्रबंधन की लापरवाही सामने आती है तो इसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
पहले भी हो चुकी हैं MP में कई ऐसे घटनाएं
इससे पहले साल 2017 में नौगांव नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के सामने रहने वाली 90 वर्षीय शांति पति बाबूलाल रजक एक माह से बीमार थी। उसका इलाज नौगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में चल रहा था। कुछ रोज से उसने खाना पीना भी बंद कर दिया था। बुधवार को दोपहर तीन बजे उसकी मौत हो गई। वृद्ध की मौत के बाद ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर द्वारा परिजनों से वृद्ध का शव घर ले जाने को कहा।
परिजनों के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। जिससे कि वह निजी वाहन से शव को ले जाते। इस दौरान उन्होंने अस्पताल से ही शव वाहन की व्यवस्था के लिए कोशिश की लेकिन नहीं सुनी। तब मजबूर होकर परिजन एक हाथ ठेला किराए पर लेकर आए। इसके बाद शाम करीब पांच बजे शव को ठेले पर रखकर घर ले गए। इस दौरान सभी सड़क पर हाथ ठेले पर शव जाता देखा।
कुछ समय पहले छतरपुर जिले के बकस्वाहा में भी मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आई थी। यहां जिला अस्पताल में चार वर्ष की राधा अहिरवार की मौत के बाद परिजन बकस्वाहा तक तो शव ले आए, पर वहां से 4 किमी दूर स्थित गांव पोंडी तक शव ले जाने के लिए शव वाहन नहीं मिला। ऐसे में चाचा ने शव को कंधे पर रखकर पैदल चलना शुरू कर दिया। खबर फैली तो बाद में नगर परिषद ने वाहन की व्यवस्था कर शव को गांव तक पहुंचाया। तब तक चाचा आधा फासला तय कर चुका था।
ये तो मृत्यु के बाद की चंद घटनाये हैं मध्य प्रदेश की चिकित्सा सुविधाओं (व्यवस्थाओं) का तो यही से अनुमान लगा सकते हैं कि कुछ समय पहले भगवानपुरा (खरगोन) के कांजिया फाल्या छोटी सिरवेल में गर्भवती महिला शांतिबाई पति सियाराम खरते (32) को लेने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंची, तो परिजन उसे खटिया पर लेटाकर तीन किमी दूर तक पैदल-पैदल चले। किंतु अस्पताल पहुंचने से पहले महिला ने दमतोड़ दिया।