ज्योतिषियों के अनुसार कई वर्षों बाद सर्वार्थसिद्धि योग में न्याय के अधिपतिदेव शनि महाराज का जन्मोत्सव मनाया जा रहा। यह दिन शनिदेव की आराधना के लिए विशेष है। मान्यताओं के अनुसार, जिन जातकों पर शनि की साढ़े साती , ढैया, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यांतर्दशा का प्रभाव है, उन्हें शनिदेव की प्रसन्नता के लिए आज के दिन उपाय करना चाहिए, फलदायी होता है।
ज्यादातर पुरोहितों, पंडितों, ज्योतिषाचार्यांे और जानकारों का कहना है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को शनि दोष होता है उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है कि लोगों को निर्भय होकर शनि जयंती के अवसर पर पीपल वृक्ष की पूजा अर्चना करने की सलाह दी जा रही है।
इसलिए की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा
स्थानीय आजाद वार्ड निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश शास्त्री के अनुसार, पुराण कथाओं में उल्लेख है कि एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था। कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण
करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोडऩे पेड़ के पास जाता तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं। तब उन्होंने शनि देव से सहायता मांगी।
इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकडऩे की कोशिश की तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
पंडित लक्ष्मीकांत द्विवेदी के अनुसार, हिंदू धर्म में पीपल की पूजा का विशेष महत्व है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद भागवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं वृक्षों में पीपल हूं।
पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूज्यनीय पेड़ माना जाता है।