साहब... हाथ में बच्चे का शव था, घर जाने पैसे भी नहीं थे, कर्ज लिया, प्राइवेट वाहन से ले गया शव
लचर सिस्टम मौत के बाद और बढ़ा देता है दर्द

शहडोल. स्वास्थ्य विभाग का लचर सिस्टम अस्पताल मेे मरीजों और परिजनों का दर्द और बढ़ा देता है। 28 नवंबर को हुई नवजात की मौत के बाद शव ले जाने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने वाहन भी नहीं दिया। बाद में परिजन प्राइवेट वाहन से ले गए। उमरिया के भरौला निवासी परिजन नवजात की मौत के बाद कर्ज लेकर बच्चे के शव को घर तक लेकर पहुंचे थे। परिजन सोहन चौधरी के अनुसारए 26 को शाम को बच्चे को लेकर उमरिया गए थे। यहां पर डॉक्टरों ने जवाब दिया कि गंदा पानी पीने से हालत खराब है। बेहतर इलाज की आस में शहडोल आ गए थे। यहां दो दिन तक बच्चे से मिलने नहीं दिया गया। रात चार बजे फोन कर मौत की जानकारी दी। बाद में अस्पताल पहुंचकर शव ले जाने वाहन के लिए भटकते रहे। सरकारी वाहन नहीं मिला। प्राइवेट एंबुलेंस वाले ज्यादा पैसों की मांग कर रहे थे। बाद में एक मित्र कुशवाहा से उधार में पैसे लिए। बाद में 26 सौ रुपए देकर प्राइवेट एंबुलेंस से गांव तक आए। दिव्यांग सोहन चौधरी का कहना था कि बार बार सीएमएचओ को फोन कर गिड़गिड़ाते रहे। कई बार कहा कि दिव्यांग हूं लेकिन वाहन नहीं मिला। बाद में प्राइवेट वाहन से लेकर गए।
सरकारी व्यवस्था:
एंबुलेंस के लिए घनघनाए फोन, गेट नहीं खुला, प्राइवेट एंबुलेंस से भेजा
जिला अस्पताल की लडखड़़ाई व्यवस्था की बानगी देखने को मिली। पहले एंबुलेंस के लिए नायब तहसीलदार फोन घनघनाते रहे। बाद में सरकारी एंबुलेंस की चाबी मिली लेकिन दरवाजा ही नहीं खुल रहा था। काफी मशक्कत के बाद दरवाजा नहीं खुला तो बाद में प्राइवेट एंबुलेंस बुलाई। अस्पताल में मौजूद दो में एक एम्बुलेंस चालू तो हो गई लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी दरवाजा नहीं खुला। ऐसे में उसमें मृत नजवात और उनके परिजन नहीं जा पाए। बाद में प्राइवेट एम्बुलेंस में परिवार को घर के लिए भेजा गया।
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