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नाराज आदिवासियों ने बंद किया मंत्री का हुक्का-पानी

locationशाहडोलPublished: Dec 22, 2017 11:40:23 am

Submitted by:

Shahdol online

आदिवासियों के बारे में मंत्री के बयान को लेकर बढ़ा विरोध, आदिवासी सम्मेलन में लिया फैसला, 24 दिसंबर को देंगे ज्ञापन

Social exclusion of the minister by breaking the soil pot

Social exclusion of the minister by breaking the soil pot

मंडला – मध्यप्रदेश के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे का आदिवासियों के संगठन ने सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की है। सर्व आदिवासी समाज की ओर से घुघरी में आयोजित सामाजिक सम्मेलन में यह फैसला किया गया। यह सम्मेलन शहीद वीर नारायण सिंह का बलिदान दिवस मनाने के लिए दो दिन पहले आयोजित किया गया था। मंत्री धुर्वे के खिलाफ इस फैसले को लेकर संगठन 24 दिसंबर को जिला प्रशासन को ज्ञापन देगा।
सम्मेलन में मंत्री धुर्वे के उस बयान की निंदा की गई, जिसमें कहा गया था कि संविधान की पांचवीं अनुसूची डिंडोरी जिले में नक्सल और अलगाववाद का प्रारंभिक रूप है। सम्मेलन में मंत्री के इस बयान को आदिवासियों के खिलाफ माना और उनके सामाजिक बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गया। परंपरा के अनुसार मिट्टी का तवा लाया गया और उसे तोड़कर धुर्वे को समाज से बहिष्कार करने की घोषणा की गई। इस मौके पर मुख्य अतिथि पूर्व जनपद अध्यक्ष कमल सिंह मरावी थे, जबकि अध्यक्षता सरपंच हम्मी लाल मरावी ने की थी।
पट्टा को पहले ही नकार चुकी है जनता: धुर्वे
नारायण पट्टा को जनता ने पहले ही बहिष्कृत कर दिया है इसलिए उनकी बातों को तवज्जो देना उचित नही रही बात मेरे बयान की तो इस संबंध में जो भ्रांतियां है वह दूर की जा रही हैं मैं अपना पक्ष समाज के सामने निरंतर रख रहा हूँ मैं विकास यात्रा में निरंतर समाज के बीच पहुंच रहा हूँ। और मैं अपना पक्ष समाज व आमजन के बीच रख रहा हूँ जिससे वे संतुष्ट हैं आगामी दिनों में स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी
बहिष्कार खत्म के लिए रोटी बनानी होगी धुर्वे को
पूर्व विधायक नारायण पट्टा ने सामाजिक बहिष्कार की पुष्टि करते हुए कहा कि मंत्री का बयान बेहद आपत्तिजनक है, इसलिए आदिवासी समाज ने यह कदम उठाया है। जानकारों का यह भी कहना है कि इस बहिष्कार से धुर्वे के परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन ओमप्रकाश धुर्वे को अब किसी भी आदिवासी समाज के कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाएगा। अगर धुर्वे समाज में शामिल होना चाहते हैं तो उन्हें परंपरा के अनुसार मिट्टी के तवे में रोटी पका कर समाज के लोगों को खिलानी पड़ेगी।

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