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ऐसे कैसे बनेंगे ध्यानचंद, दो साल से खेल परिसर में नहीं मिल रहा प्रवेश

locationशाहडोलPublished: Aug 29, 2018 07:56:25 pm

Submitted by:

shivmangal singh

खेल दिवस पर विशेष रिपोर्ट : करोड़ों के क्रीड़ा परिसर में दो वर्षों से खिलाडिय़ों को नहीं दिया जा रहा प्रवेश, हो रही एडवेन्चर स्पोट्र्स की तैयारीआदिवासी अंचल के खिलाडिय़ों को नहीं मिल रही स्तरीय खेल की सुविधा

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ऐसे कैसे बनेंगे ध्यानचंद, दो साल से खेल परिसर में नहीं मिल रहा प्रवेश

शहडोल. जनजातिय कार्य विभाग द्वारा शहडोल के क्रीड़ा परिसर को विशिष्ट संस्था मानकर रॉक क्लाइमिंग एण्ड गुल्डरिंग एडवेंचर स्पोर्टस की विधा प्रारंभ करने की तैयारी की जा रही है। जबकि जानकारों के अनुसार इस विधा का न तो स्कूल गेम्स फेडरेशन में नाम है और न ही इसकी कोई राष्ट्र स्तर की कोई प्रतियोगिता होती है। ऐसी दशा में करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद स्कूली खिलाडिय़ों को एडवेंचर गेम सीखने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा। एडवेन्चर गेम के के लिए नदी और पहाड़ जैसे लोकेशन की जरूरत होती है। साथ ही छठवीं व सातवीं के बच्चों को इस विधा से जोडऩा उचित नहीं होगा। बताया गया है एडवेन्चर गेम की वजह से क्रीड़ा परिसर में पिछले सत्र से नवीन विद्यार्थियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए जनजातिय कार्य विभाग के उपायुक्त ने जिले के सहायक आयुक्त को गत वर्ष पत्र जारी किया था। पत्र में स्पष्ट किया गया था कि जिले में संचालित विशिष्ट क्रीड़ा परिसर में नवीन विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं दिया जाना है। यहां यह बताना जरूरी है कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे खेलों को खेल केलेण्डर से हटाया जा रहा है, जो खेल ओलंपिक, राष्ट्रमंडल व एशियाड का हिस्सा नहीं है। इसी प्रकार आदिवासी अंचल में भी एडवेन्चर गेम की जगह स्कूली खिलाडिय़ों को ऐसे खेलों में पारंगत करने की जरुरत है, जिसमें वह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना व अपने क्षेत्र का नाम रौशन कर सके।

छिन जाएगी सौगात
संभागीय मुख्यालय के समीपी ग्राम विचारपुर में पिछले चार साल से चौदह एकड़ की भूमि पर 16.56 करोड़ रुपए की लागत से क्रीड़ा परिसर का निर्माण किया जा रहा है। जहां एडवेन्चर गेम्स की तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इस प्रकार आदिवासी अंचल को मिली क्रीड़ा परिसर की सौगात छिनती नजर आ रही है। जिससे आदिवासी अंचल के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को खेल का हुनर सीखने के लिए गली-गली का मोहताज होना पड़ेगा और जिले की खेल प्रतिभाएं विलोपित हो जाएगी।

सौ बच्चों में पचास बच्चे बचे
गौरतलब है कि जिले के आदिवासी छात्रों के शारीरिक दक्षता एवं रूचि के आधार पर खेलों की बारीकियों को सिखाने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में जिले को क्रीड़ा परिसर की सौगात दी गई थी। क्रीड़ा परिसर में जिले की प्राथमिक शालाओं से चयनित सौ उत्कृष्ठ आदिवासी छात्रों को क्रीड़ा परिसर में आवासीय सुविधा प्रदान कर कोच व विशेषज्ञों के माध्यम से खेलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा था, मगर पिछले दो वर्षों से प्रवेश नहीं दिए जाने की वजह से वर्तमान में पचास ही बच्चें बचें हुए है। वर्तमान में यह परिसर ग्राम धुरवार के कुदरा टोला के बैगा आश्रम में संचालित हो रहा है और विचारपुर में नवनिर्मित भवन में शिफ्ट होने की तैयारी चल रही थी। परिसर में बच्चों को एथलेटिक्स, व्हालीबाल, कबड्डी, खो-खो और कराते सहित अतिरिक्त गेम क्रिकेट का प्रशिक्षण दिया जाता है।
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जारी है निर्माण कार्य
पिछले वर्ष भोपाल में आदिवासी विकास विभाग के आयुक्त की अध्यक्षता में निर्माण कार्यों की समीक्षा बैठक में यह निर्णय भी लिया गया है कि क्रीड़ा परिसर इंदौर, झाबुआ, खरगौन, श्योपुर, जबलपुर व शहडोल के परिसरों को स्थगित किया जाए व पुन: आवश्यक कार्य व डिजाइन खेल विभाग के साथ चर्चा कर तैयार किए जाने के निर्देश परियोजना क्रियान्वयन इकाई लोक निर्माण विभाग को दिए गए हैं। जिसके अनुरूप निर्माण स्थल पर मंथर गति से कार्य कराया जा रहा है। इस संबंध में कमिश्नर जेके जैन से संपर्क किया गया, परन्तु वह भोपाल मीटिंग में थे। कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने फोन नहीं उठाया और जनजातिय कार्य विभाग के उपायुक्त जेएम सरवटे व सहायक आयुक्त नरोत्तम बरकड़े के मोबाइल स्विच ऑफ रहे।
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