विकराल रूप धर कर दुष्टों का संहार करने वाली मां काली की अद्भुत प्रतिमा जिला मुख्यालय से लगभग १५ किलोमीटर दूर ग्राम सिंहपुर में स्थापित है। जिनकी महिमा का बखान करते लोग नहीं थकते हैं। सिंहपुर के साथ ही आस-पास के लगभग ४० गांवों के लोग सिंहपुर में विराजी मां काली की कुलदेवी के रूप में आराधना करते हैं। इतना ही नहीं शादी के समय कन्या को चढ़ाए जाने वाले तेल की कटोरी सबसे पहले माता रानी के पास आती है। जहां पहले माता रानी को तेल चढ़ता है इसके बाद प्रसाद के रूप में बचे हुए तेल को ले जाकर वधू को तेल चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही मण्डप की मिट्टी भी माता रानी के दरबार से ही जाती है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन आज भी ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है।
सिंहपुर के साथ ही आस-पास के क्षेत्रों में माता रानी के कई चमत्कारों की चर्चाएं हैं। जिसमें एक यह भी है कि एक बार माता रानी के एक भक्त ने माता रानी की परीक्षा के लिए यह कहकर कि देवी सत्य की है तो यह बांस हरा हो जाए और माता के समक्ष सूखे बांस को गाड़ दिया था। ऐसी किंवदंती है कि मां की कृपा से सुबह वह बांस हरा भरा हो गया और कई दिनों तक वह मंदिर परिसर में प्रत्यक्ष रूप से रहा। यह भी मान्यता है कि आज भी ब्रम्हमुहूर्त में माता रानी मंदिर परिसर के सामने रजहा तालाब में स्नान करती हैं। सुबह पायल की आवाज भी सुनाई देती है।
माता के विकराल स्वरूप के होते हैं दर्शन
इस संबंध में पं. सूर्यकांत शुक्ला ने बताया कि सिंहपुर में स्थापित मां कराल वदन, घोर स्वरूप, खुले बाल, चतुर्भुजी काली जो कि दक्षिण की देवी कहलाती है वह मुण्डो की माला से विभूषित हो रही है। सिंहपुर में स्थापित संभाग का पहला ऐसा मंदिर है जिसमें माता काली के बगल में भगवान गणेश की योगनियों के संग साथ ही माता सरस्वती विराजमान है। जो शास्त्रोक्त दृष्टि से अद्भुत संयोग माना जाता है।
सती प्रथा के अवशेष भी हैं यहां
सिंहपुर के ईशान कोण में स्थित मां काली के इस विशाल मंदिर परिसर में पचमठा, श्रीराम जानकी मंदिर, शिव मंदिर, सती चबूतरा व अन्य देवियों की प्रतिमाए स्थापित हैं। यहां पर स्थापित सती चबूतरा को सती प्रथा के अवशेष के रूप में माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि समाज में जब सती प्रथा का प्रचलन था। तब यहीं पर महिलाएं सती प्रथा का निर्वहन करतीं थीं। ये चबूतरा उसी का प्रतीक है।
पर्यटन स्थल के रूप में किया जा सकता है विकसित
सिंहपुर में प्रचीन मंदिर स्थित है, आसपास के लोग यहां पूजा करने और मन्नत मांगने आते हैं। कहा जाता है कि सबकी यहां पर मुरादें भी पूरी हो जातीं हैं। यहां पर संरक्षित स्मारक पचमठा भी स्थित है। एक बड़ा तालाब जिसे रजहा तालाब कहा जाता है बना हुआ है। सरकार और प्रशासन यदि यहां पर ध्यान दे तो स्थानीय पर्यटन के तौर पर विकसित किया जा सकता है। इसके लिए शहडोल और अन्य बड़े शहरों में प्रचार-प्रसार की भी जरूरत है। यदि यहां पर मंदिर और तालाब को संवार दिया जाए तो निश्चित रूप से एक रमणीक धार्मिक स्थल बन सकता है। अभी मंदिर के अलावा यहां पर सरकार की और समिति की तरफ से कुछ भी नहीं किया गया है। मंदिर की व्यवस्था यदि ट्रस्ट को सौंप दी जाए तो निश्चित रूप से यहां विकास किया जा सकता है।
11वीं सदी की है प्रतिमा
मां काली की प्रतिमा और गणेश की प्रतिमा 11वीं की सदी की बताई जाती है। हालांकि इसका ज्ञात कोई इतिहास वहां पर मौजूद नहीं है। पचमठा का जरूर वहां पर एक बोर्ड राज्य पुरातत्व विभाग ने लगाया हुआ है कि ये मठ 17वीं सदी में बनाए गए थे। आज इन मठ को भी संवारने की जरूरत है। संरक्षित स्मारक होने के बाद भी इनका रखरखाव ढंग से नहीं किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा उपेक्षित होने की वजह से इनकी हालत खराब है। इन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।