जिले में से 38 मरीज थैलेसीमिया से लड़ रहे जंग
शाहडोल
Published: May 08, 2022 12:33:12 pm
शहडोल. आदिवासी इलाकों में दिन-प्रतिदिन थैलेसीमिया रोग से पीडि़तों की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान में जिले भर में थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या तीन दर्जन से पार हो चुकी है। शरीर में खून के अभाव में जानलेवा साबित होने वाली बीमारी कोई संक्रमण रोग नहीं है लेकिन जन्म के साथ नवजातों को होने वाली बिमारी उनके भविष्य के लिए घातक है। जिला अस्पताल में थैलेसीमिया विशेषज्ञ चिकित्सक न होन से मरीजों को कई प्रकार की असुविधाओं से गुजरना पड़ रहा है। इतना ही नहीं मेडिकल बोर्ड की टीम में भी विशेषज्ञ न हाने से मरीजों के कांउसलिंग में दिक्कतें आती हैं जिससे मरीजों को मिलने वाले इलाज से वंचित होना पड़ता है। प्रबंधन ने थैलेसीमिया व सिकलसेल के लिए डॉक्टरोंं को ट्रेनिंग भी नहीं कराई है। जानकारी के आभाव में मरीजों को अंदाज में ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। जिससे कभी-कभी मरीजों के स्वास्थ पर भी प्रभाव पड़ता है।मरीजों के मिन्नतों से थैलसीमिया वार्ड तो बनाया गया है पर वार्ड में जरूरी सुविधाएं न होने के कारण मरीज व परिजनों को दिक्कतों को सामना करना पड़ता है। मेजर मरीजों को 8 से 10 दिनों मे ब्लड की आवश्यकता होती है। जो जिला अस्पताल के ब्लड बैंक से उपलब्ध कराया जाता है। अन्य सीजनों में मरीजों को आसानी से ब्लड उपल्बध हो जाता है लेकिन गर्मी के दिनों मे ब्लड में खून की कमी बनी रहती है।
38 रजिस्टर्ड मरीज लड़ रहे जंग
जिले भर में अब तक 38 मरीेजों को दर्ज किया जा चुका है वहीं कुछ मरीेज ऐसे भी है जिनका रजिस्ट्रेशन करना बाकी है। अस्पताल में मरीजों को समुचित इलाज व वार्ड में व्यवस्था न मिलने के कारण उन्हे दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। थैलेसीमिया सोसाइटी के अध्यक्ष पारस जैन ने बताया है कि विशेषज्ञ डॉक्टर न होने की वजह से मरीजों को कई बार असुविधा होती है। मरीज को कब कितना ब्लड लगना है इसकी जानकारी चिकित्सकों को न होने के कारण वह एक यूूनिट ही ब्लड़ लगाने की सलाह देतें है। जबकी अन्य हायर सेंटरो में मरीजों को 2 से तीन यूनिट तक ब्लड एक दिन में लगाया जाता है। मरीजों की दवाई की खुराक को लेकर भी कई बार चिकित्सकों से चूक हुई है एक ही दवाई को दो कंपनी का लिख देने से मरीज को एक बार में दो डोज लेनी पड़ती है।
वार्ड में होती है समस्या
थैलेसीमिया के मरीजों को ब्लड चढऩे पर दो से तीन घंटे का समय लगता है। जिससे उन्हे बार-बार सुविधाघर जाने की जरूरत पड़ती है। थैलेसीमिया वार्ड में वॉशरूम अटैच न होने के कारण मरीजो के परिजन हाथ में बॉटल लगाए हुए ही दूसरे वार्ड के सुविधाघर जाने को मजबूर होते है। इस दौरान कई मरीजों को चक्कर भी आ जाता है। इतना ही नहीं वार्ड में एक एसी लगा हुआ है जब किसी मरीज को ज्यदा ठंड महसूस होती है तो एसी बंद कर दिया जाता है। वार्ड में एक भी पंखा न लगे होने के कारण अन्य मरीजों को गर्मी से दिक्कतें होती हैं।
इनका कहना है
अस्पताल में थैलेसीमिया मरीजों के विशेषज्ञ चिकित्सक न होने से कई बार इलाज में बड़ी चूक हो जाती है। थैलेसीमिया सोसायटी के प्रयासोंं से वार्ड तो बनाया गया है लेकिन वार्ड से अटैच सुविधाघर न होने से मरीजों के लिए बड़ी समस्या है। वार्ड में बेड की कमी के साथ-साथ मरीज के परिजनों की बैठने की व्यवस्था नहीं है। पंखा न लगे होने के कारण मरीजों को गर्मी से झूझना पड़ता है। कई बार प्रबंधन को सुविधाओंं को लेकर अवगत कराया गया पर कोई पहल नहीं की गई। -पारस जैन, अध्यक्ष थैलेसीमिया सोसायटी।
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