स्थानीय पाण्डव नगर स्थित खेरमाता मंदिर में भक्तगण अपनी मन्नत पूरी करने आते हैं और मन्नत पूरी होने पर वो अपनी श्रद्धा भाव से मां के दरबार में हाजिरी लगाकर कथा सुनते हैं। और लोगों को प्रसाद का वितरण करते हैं। मां के दरबार में सबसे ज्यादा प्रेमी युगल जोड़े आते हैं और अपने प्रेम विवाह की मन्नत मांगते हैं। इसके अलावा बीमारी ठीक होने, सूनी गोद भरने एवं विवाह सहित अन्य कई मनोकामना के लिए भक्तगण मंदिर आते हैं। मन्नत के लिए भक्तगण मंदिर प्रांगण में स्थित पौराणिक बरगद के पेड़ में संकल्प लेकर नारियल बांधते हैं और मन्नत पूरी होने पर उसे खोलने आते हैं। पुजारी के अनुसार ऐसी मान्यता है कि खेरमाता अपनी सात बहनों के साथ रहती थीं। उनकी सात बहनों में बूढ़ी माई, कालिका माई,शारदा माई, कंकाली देवी, विरासनी देवी और मरही देवी थी।
जो जन कल्याण के लिए एक समय पर एक साथ अलग-अलग दिशाओं की ओर निकल गईं और अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हो गईं। और इस जगह पर खेरमाता विराजीं और अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए मंगना बैगा को अपना सेवक नियुक्त किया। मंदिर प्रांगण के पौराणिक बरगद में चारो और नारियल ही नारियल नजर आते हैं। एसी मान्यता है कि माता के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है। भक्तों की जो भी मुरादें होती हैंं वह अवश्य पूरी होती हैं।
मंदिर में आते थे शेर
मंदिर के पुजारी ने बताया है कि करीब सौ वर्ष पहले इस जगह पर पहले काफी घना जंगल था। जहां शेर के अलावा अन्य जंगली जानवरों का आना-जाना बना रहता था और बरगद के पेड़ के नीचे खेरमाता की मूर्ति स्थापित थी। उन्होंने बताया कि सोहागपुर निवासी उनके दादा मंगना बैगा को माता ने स्वप्र में सेवा करने का आदेश दिया। जिसके परिपालन में घने जंगल मेेंं उनके दादा उक्त स्थल पर आए और माता की सेवा में लग गए। इसके बाद से लेकर अब तक उनकी पीढिय़ों ने ही माता की सेवा की है।
मंदिर के पुजारी ने बताया है कि करीब सौ वर्ष पहले इस जगह पर पहले काफी घना जंगल था। जहां शेर के अलावा अन्य जंगली जानवरों का आना-जाना बना रहता था और बरगद के पेड़ के नीचे खेरमाता की मूर्ति स्थापित थी। उन्होंने बताया कि सोहागपुर निवासी उनके दादा मंगना बैगा को माता ने स्वप्र में सेवा करने का आदेश दिया। जिसके परिपालन में घने जंगल मेेंं उनके दादा उक्त स्थल पर आए और माता की सेवा में लग गए। इसके बाद से लेकर अब तक उनकी पीढिय़ों ने ही माता की सेवा की है।