ब्यौहारी के तहसील कार्यालय के नजदीक आदिवासी परिवार की भूमि खरीदी मामले में भी अधिकारियों तक शिकायत पहुंची है। तत्कालीन कलेक्टर ने यहां आदिवासी की भूमि खरीदी बिक्री की अनुमति दे दी थी। बाद में यहां फार्म हाउस बनाने के साथ बिल्डिंग भी ठेकेदार ने बना ली है। शिकायत में बताया गया है कि ठेकेदार द्वारा 15 वर्ष से भूमि का उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा अब अतिरिक्त भूमि पर ठेकेदार द्वारा समतलीकरण कराकर भूमि हड़पने का प्रयास किया जा रहा है। आदिवासी की भूमि की खरीदी-बिक्री की अनुमति मामले में भी तत्कालीन अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ठेकेदार ने रसूख के चलते एक भूमि की अनुमति कराने के बाद आदिवासी परिवार के नाम दर्ज दूसरे भूमि के लिए भी आवेदन किया था लेकिन तत्कालीन कलेक्टर डॉ सतेन्द्र सिंह ने रोक लगा दी थी। अधिकारियों ने जांच के निर्देश दिए हैं।
7 माह पूर्व आयकर विभाग ने मनरेगा में काम कर चुके एक मजदूर की करोड़ों की संपत्ति पर अस्थायी कुर्की आदेश जारी किया था। सड़क निर्माण ठेका कंपनी ने आदिवासी मजदूर के नाम शहडोल में 16 और उमरिया में पांच जगहों पर भूमि खरीद ली थी। आयकर विभाग की पूछताछ कार्रवाई में मजदूर ने खुद को काफी गरीब और सभी भूमि मालिक द्वारा खरीदने की बात कही थी। बुढ़ार की इस ठेकेदार द्वारा आदिवासी मजदूर की भूमि पर डामर प्लांट के अलावा सीमेंट पोल सहित कई व्यावसायिक उपयोग में लिया जा रहा था। शहडोल के पड़रिया, लालपुर, कंचनपुर में भूमि मिली थी। उमरिया के बांधवगढ़ क्षेत्र में सबसे ज्यादा भूमि ली थी। बयान में मजदूर ने साफ कहा था कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि भूमि खरीदी सकूं। मालिक ने खरीदी थी, उनके पास ही रजिस्ट्रियां हैं। ऐसे दर्जनों मामले हैं, जो मजदूरों के नाम पर खरीद खुद उपयोग कर रहे हैं।
राजीव शर्मा, कमिश्नर शहडोल