दूसरे मित्र ने कहा – मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं। वह बोला – बाहर के लिये तो मैं ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।
तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया। अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है…?
दूसरा मित्र है शरीर के ‘सम्बन्धी’ जैसे :- माता – पिता, भाई – बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह – दोपहर शाम मिलते है।
और तीसरा मित्र है :- हमारे ‘कर्म’ जो सदा ही साथ जाते है।
दूसरा मित्र – सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है। तथा वहाँ से फिर वापस लौट जाते है।
और तीसरा मित्र आपके कर्म है। कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हों या बुरे। अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते हैं तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा। अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरूरत नहीं होगी। धर्मराज भी हमारे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल देंगे।