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तीन सौ रुपए में गुजारा कर रहा, देश को तीन स्वर्ण दिलाने वाला ये अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी

locationशाहजहांपुरPublished: Jan 02, 2018 10:50:09 am

Submitted by:

suchita mishra

कौशलेन्द्र अन्तरराष्ट्रीय खेलों में देश को तीन स्वर्ण पदक दिला चुके हैं, लेकिन आज महज 300 रुपए प्रतिमाह की पेंशन के सहारे जीवन गुजार रहे हैं।

kaushlendra singh

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शाहजहांपुर। हमारे देश में खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की तमाम बातें होती हैं, लेकिन इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये आज हम आपको दिखाएंगे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शाहजहांपुर के कौशलेन्द्र सिंह के बारे में। कौशलेन्द्र पैरालम्पिक खेलों में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए कई मेडल जीत चुके हैं, लेकिन सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलना तो दूर, कौशलेन्द्र के लिए दो वक्त की रोजी रोटी जुटा पाना भी बड़ी बात है। आज वे महज 300 रूपये प्रति माह की पेंशन के सहारे मुफलिसी भरी जिन्दगी गुजार रहे हैं।
कौशलेन्द्र मूलरूप से शाहजहांपुर के थाना जलालाबाद के प्रतापनगर के रहने वाले हैं। वर्ष 1981 में कौशलेन्द्र जापान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय पैरालम्पिक खेलों का हिस्सा बने और 1500 मीटर और 100 मीटर की व्हीलचेयर रेस में गोल्ड मेडल जीता। इसके साथ ही 100 मीटर की बाधा दौड़ में भी कौशलेन्द्र ने गोल्ड मेडल हासिल किया। 1982 में हांगकांग में हुए पेसिफिक खेलों में कौशलेन्द्र एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल कर चुके हैं।
Medel
14 साल की उम्र में टूटी थी रीड़ की हड्डी
कौशलेन्द्र 14 साल की उम्र में जामुन के पेड़ से गिर गये थे जिससे उनकी रीड़ की हडडी टूट गई थी और उनके कमर के नीचे के हिस्से में पैरालिसिस हो गया था। लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने शुरुआत में कई राज्यस्तरीय पदक जीते। 16 साल की उम्र में उनका चयन जापान में आयोजित पैरालम्पिक खेलों के लिए हुआ। वहां गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने कई देशों में आयोजित खेलों में हिस्सा लिया और देश के लिए पदक जीते। कौशलेन्द्र का कहना है कि वे आज भी देश को पदक दिलाने की दम रखते हैं।
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सरकार की किसी योजना का फायदा नहीं मिला
कौशलेन्द्र का कहना है कि तमाम नेताओं ने उन्हें सरकारी मदद दिलाने के वादे किए, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। शरीर से अक्षम होने के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया। फिलहाल उनका जीवन छोटे भाई तीर्थराज सिंह के भरोसे चल रहा है। तीर्थराज ही उनकी सेवा करते हैं।
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