कौशलेन्द्र मूलरूप से शाहजहांपुर के थाना जलालाबाद के प्रतापनगर के रहने वाले हैं। वर्ष 1981 में कौशलेन्द्र जापान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय पैरालम्पिक खेलों का हिस्सा बने और 1500 मीटर और 100 मीटर की व्हीलचेयर रेस में गोल्ड मेडल जीता। इसके साथ ही 100 मीटर की बाधा दौड़ में भी कौशलेन्द्र ने गोल्ड मेडल हासिल किया। 1982 में हांगकांग में हुए पेसिफिक खेलों में कौशलेन्द्र एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल कर चुके हैं।
14 साल की उम्र में टूटी थी रीड़ की हड्डी
कौशलेन्द्र 14 साल की उम्र में जामुन के पेड़ से गिर गये थे जिससे उनकी रीड़ की हडडी टूट गई थी और उनके कमर के नीचे के हिस्से में पैरालिसिस हो गया था। लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने शुरुआत में कई राज्यस्तरीय पदक जीते। 16 साल की उम्र में उनका चयन जापान में आयोजित पैरालम्पिक खेलों के लिए हुआ। वहां गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने कई देशों में आयोजित खेलों में हिस्सा लिया और देश के लिए पदक जीते। कौशलेन्द्र का कहना है कि वे आज भी देश को पदक दिलाने की दम रखते हैं।
कौशलेन्द्र 14 साल की उम्र में जामुन के पेड़ से गिर गये थे जिससे उनकी रीड़ की हडडी टूट गई थी और उनके कमर के नीचे के हिस्से में पैरालिसिस हो गया था। लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने शुरुआत में कई राज्यस्तरीय पदक जीते। 16 साल की उम्र में उनका चयन जापान में आयोजित पैरालम्पिक खेलों के लिए हुआ। वहां गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने कई देशों में आयोजित खेलों में हिस्सा लिया और देश के लिए पदक जीते। कौशलेन्द्र का कहना है कि वे आज भी देश को पदक दिलाने की दम रखते हैं।
सरकार की किसी योजना का फायदा नहीं मिला
कौशलेन्द्र का कहना है कि तमाम नेताओं ने उन्हें सरकारी मदद दिलाने के वादे किए, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। शरीर से अक्षम होने के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया। फिलहाल उनका जीवन छोटे भाई तीर्थराज सिंह के भरोसे चल रहा है। तीर्थराज ही उनकी सेवा करते हैं।
कौशलेन्द्र का कहना है कि तमाम नेताओं ने उन्हें सरकारी मदद दिलाने के वादे किए, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। शरीर से अक्षम होने के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया। फिलहाल उनका जीवन छोटे भाई तीर्थराज सिंह के भरोसे चल रहा है। तीर्थराज ही उनकी सेवा करते हैं।