सवास्थ्य और पर्यावरण के लिए जैव चिकित्सा अपशिष्ट खतरनाक है, इससे न सिर्फ गंभीर बीमारियां फैलती है, बल्कि थल ओर वायु सभी दूषित होते हैं। ये कचरा भले ही एक अस्पताल के लिए मामूली कचरा हो, लेकिन भारत सरकार व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार यह मौत का सामान है। ऐसे कचरे सेएचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होने का भी डर बना रहता है।
बायोमेडिकल वेस्ट को लेकर तय की गई नई गाइडलाइन से पंजीकृत अस्पतालों पर दबाव रहेगा, लेकिन झोलाछाप की मनमानी जारी रहेगी। शहर के वार्ड ९ में बना टं्रेचिंग ग्राउंड में क्लीनिकों से निकलने वाला बायोमेडिकल वेस्ट देखा जा सकता है। शहर में संचालित होने वाले अनेक गैर पंजीकृत क्लीनिकों का वेस्ट मटेरियल टं्रेचिंग ग्राउंड पर फेंका जाता है।
बायोमेडिकल वेस्ट अधिनियम १९९८ के अनुसार निजी व सरकारी अस्पतालों द्वारा चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले में या सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए। न ही इस कचरे को नगर पालिका के कचरे में मिलाना चाहिए। साथ ही स्थानीय कूड़ाघरों में भी नहीं डालना चाहिए। इस कचरे में फेंकी जाने वाली सलाइन बोतले और सिरिंज कबाडिय़ों के हाथो से होती हुईअवैध पैकिंग का काम करने वालों तक पहुंचती है, जहां से इन्हें साफ कर नई पैकिंग में बाजार में बेच दिया जाता है। जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पतालों के खिलाफ जुर्माने व सजा का भी प्रावधान है।
जीएल सोढ़ी, सीएमएचओ, शाजापुर