यहां भी हुई दुलदुल की स्थापना
इधर नगर के मुगलपुरा, जुगनवाड़ी, मोमनवाड़ी, पायगा, दायरा, चौबदारवाड़ी, करदीपुरा, मनिहारवाड़ी, मगरिया, लालपुरा, छोटा चौक, पिंजारवाड़ी, महुपुरा, बादशाही पुल आदि क्षेत्रों में दुलदुल और बुर्राक की स्थापना भी की गई। शहर में बड़े साहब के ऐतिहासिक जुलूस १९ और २१ सितंबर को निकाले जाएंगे। मंगलवार को चांद दिखने के साथ ही इस्लामी नववर्ष एवं मोहर्रम पर्व की शुरूआत हो गई है।
कुर्बानी का पैगाम देता है मोहर्रम
मोहर्रम कमेटी सरपरस्त बाबूखान खरखरे ने बताया कि धर्म एवं सच्चाई की खातिर अपने पूरे घराने की कुर्बानी देने वाले हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम समाज द्वारा इस वर्ष भी परंपरानुसार मोहर्रम मनाया जा रहा है। इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी संवत में मुहर्रम के महीने से ही साल की शुरूआत होती है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस महीने की दस तारीख को हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए ७१ लोगों की कुर्बानी को याद करते हैं। इमाम हुसैन अपने उसूलों के लिए शहीद हुए थे। मुहर्रम का आयोजन उस शहादत की भावना को जगाए रखने का एक माध्यम है, मोहर्रम नेकी और कुर्बानी का पैगाम देता है। इस्लाम के मानने वाले विभिन्न समुदाय अलग-अलग तरीकों से इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। कुछ समुदाय ताजियों के माध्यम से उन्हेें याद करते हैं और कुछ समुदाय रात भर जाग कर नफ्ली नमाज पढक़र अपने दिलों को उनकी याद में रोशन करते हैं।