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video : बालाओं ने लगाए ऐसे ठुमके, कि देर रात तक सड़कों पर लगा रहा हुजूम…

locationशाजापुरPublished: Mar 06, 2018 12:46:40 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

कवियों ने देर रात तक बांधे रखा श्रोताओं को, हिंदू उत्सव समिति ने आयोजित किया कवि सम्मेलन, आर्केस्ट्रा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रही धूम

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शाजापुर. पांच दिनी होली उत्सव के दौरान शहर में अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस दौरान अलग-अलग समितियों के आयोजित कार्यक्रमों का लुत्फ शहरवासी उठा रहे हैं। खास बात यह है कि शहरवासियों को होली पर्व के दौरान आर्केस्ट्रा और कवि सम्मेलन का दो बार लुत्फ लेने को मिल रहा है।

नामी कवियों ने मंत्रमुग्ध किया
चंद्रशेखर आजाद होली उत्सव समिति द्वारा आजाद चौक में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान देशभर से आए नामी कवि व कवयित्रियों ने रचनाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस दौरान देशभक्ती के रचनाओं व गीतों के साथ ही हास्य कवियों ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। इधर जयहिंद उत्सव समिति द्वारा टंकी चौराहा पर रविवार रात आरर्केस्टा का आयोजन किया गया। होली के मधुर गीतों के साथ ही आरक्रेस्टा में आकर्षक नृत्य ने देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।

मंदिरों में फाग उत्सव का उल्लास
आगर-मालवा. शहर में होली के दौर के चलते मंदिरों में फाग उत्सव भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। विभिन्न महिला मंडलों द्वारा शहर के विभिन्न मंदिरों में फाग उत्सव का आयोजन का फूलों एवं गुलाल से होली खेली जा रही है। इसी तारतम्य में सोमवार को अतिप्राचीन चिंताहरण गणेश मंदिर में महिला मंडल ने फाग उत्सव मनाया और भजन-कीर्तन किए। इसी प्रकार मास्टर कालोनी पाल रोड स्थित मंदिर में भी फाग उत्सव का आयोजन किया गया। यहां भी कालोनी की महिला मंडल ने भजन-कीर्तन करते हुए फाग उत्सव मनाया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।

होली : सौहार्र्द की परंपरा का हो रहा निर्वहन
कानड़. होली का पर्व नगर में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में कायम है। यहां इस पंरपरा का बरसों से निर्वहन होता आ रहा है। नगर में होली की दूज से गेर होली के गीत गाते हुए निकलती है और हजरत पहलवान शाहदाता के आस्ताने पर पहुंचकर केसरिया, पीले व हरे रंग के निशान को रखा जाता है। ढोल की थाप पर नाचते हुए लोग पहुंचे और निशान को उठाकर चल देते हैं। यह परंपरा बरसों पुरानी है।

शाम को निकली गेर
होली के दो दिन बाद नगर में स्थित गोंदी चौराहा से देरशाम को गेर निकली। इसको तुर्रा गेर कहा जाता है। परंपरागत गीत गाते हुए शामिल सदस्य प्रमुख मार्गों से होते हुए पुराने थाने स्थित हजरत पहलवान शाहदाता के अस्ताने पहुंचते हैं। यहां पर निशान चढ़ाया जाता है। कुछ देर निशान को रखने के बाद ढोल की थाप पर झूमते हुए निशान को गोंदी चौराहा पर लाकर फहरा दिया जाता है। इसके बाद तुर्रा गेर में शामिल सदस्य ढोल की थाप पर नाचना-गाना शुरू करते हैं।

तुर्रा और किलकी में होती थी छींटाकशी
गेर में शामिल हरिनारायण पटेल, अमरसिंह, कांतिलाल बीजापारी, करणसिंह गायरी, राकेश राठौर, तेजकरण बरेठा आदि ने बताया पुराने समय में तुर्रा और किलकी की अलग-अलग गेर निकलती थी। इनका आमना-सामना होता था। इस दौरान दोनों ओर से एक-दूसरे पर छींटाकशी की जाती थी। आनंद देररात तक लोग उठाते थे, लेकिन वर्तमान में किलकी गेर बंद हो गई है।

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