हर निजी ख्वाईश पर काबू करना है रोजा
जमीअत उलेमा के शहर सदर मुफ्ती अ. हमीद सा. ने पत्रिका को बताया कि रमजान में दिनभर भूखे-प्यासे रहकर खुदा को याद करने की मुश्किल साधना करने वाले रोजेदार को अल्लाह खुद अपने हाथों से बरकते नवाजता है। यह महीना कई मायनों में अलग और खास है। अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था। जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार तत्व को भी जाहिर करता है। उन्होंने बताया कि रोजा न सिर्फ भूख और प्यास बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है। इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है। रमजान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल संपत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे जकात के तौर पर गरीबों में बांटते हैं।
छोटा चौक में सजी इफ्तारी की दुकान
रमजान माह शुरू होते ही शहर के विभिन्न क्षेत्रों में इफ्तारी की दुकाने सज गई है। शहर के छोटा चौक में विशेषकर इफ्तारी की दुकान लगाई गई है। यहां लजीज व्यंजनों के साथ ही विभिन्न प्रकार फ्रूट के ठेले सजे हुए हैं। शाम ५ बजे से ही यहां इफ्तारी के खरीदारों की भीड़ बढऩे लगी और इफ्तार के पहले तक जमकर खरीदारी की गई है। पहला रोजा होने से बाजार में खासी भीड़ रही।