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शाजापुर

इस मुकाम को पाने के लिए खुशी ने एकलव्य बनकर दी परीक्षा

वेटलिफ्टिंग में पाल सर को ‘द्रोणाचार्यÓ बनाकर ‘एकलव्यÓ बनीं खुशी, गुरु के जीते हुए मेडल की बराबरी करने का रखा लक्ष्य

शाजापुरJul 16, 2019 / 01:00 am

rishi jaiswal

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शाजापुर.महाभारत में निषाद पुत्र एकलव्य ने धनुर्विद्या सीखने के लिए द्रोणाचार्य के मना करने के बाद भी उन्हें अपना गुरु बनाया और मूर्ति के सामने अभ्यास किया। सतयुग की इस घटना को कलयुग में कोई दोहराए, यह यकीन करना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन शाजापुर की वेट लिफ्टर खुशी यादव ने एकलव्य की तरह ही गुरु भक्ति की अनूठी मिसाल कायम की है। खुशी ने भले ही गुरु लीलाधर पाल की मूर्ति नहीं बनाई, लेकिन उनके द्वारा वर्ष 1974 में ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी वेटलिफ्टिंग में जीते सर्टिफिकेट को सामने रखकर वह जी-तोड़ मेहनत कर रही है। खुशी का सपना है कि वह अपने गुरु की तरह राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल कर उसे गुरु दक्षिणा के रूप में गुरु के चरणों में भेंट करें।
शहर के हरायपुरा के समीप गवली मोहल्ला में रहने वाली साधारण परिवार की बालिका खुशी पिता सुरेश यादव ने करीब साढ़े तीन साल पहले वेटलिफ्टिंग की शुरुआत की। खुशी के जुनून को आगे बढ़ाया उसके गुरु सेवानिवृत्त शिक्षक लीलाधर पाल ने। पाल सर से ट्रेनिंग लेकर खुशी ने स्थानीय से लेकर जिला, संभाग, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक अपना दम दिखाते हुए पदक हासिल किए। नौवीं अध्ययन के दौरान खुशी ने पहली बार जिलास्तर की वेटलिफ्टिंग की स्पर्धा में भाग लिया था। वर्ष 2015-16 में संभाग स्तर की प्रतियोगिता में खुशी ने टॉप किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 2015-16 में ही सीहोर में आयोजित राज्यस्तरीय स्पर्धा में खुशी ने माइनस 69 वेट कैटेगिरी में स्वर्ण पदक हासिल करके सबको चौंका दिया। अब खुशी का अगला लक्ष्य अपने गुरु पाल सर के जिते हुए खिताब की बराबरी करने का है।
प्रदेश का पहला स्वर्ण जीता था पाल सर ने
वेटलिफ्टिंग के गुरु पाल सर ने कॉलेज के जमाने में इंदौर कॉलेज की ओर से ऑल इंडिया लेवल की इंटर यूनिवर्सिटी वेटलिफ्टिंग स्पर्धा में देशभर के समस्त कॉलेज से आए प्रतिभागियों के सामने दमखम दिखाया था। 1974 में जबलपुर में आयोजित हुईं। पाल सर ने 52 किलो वेट कैटेगिरी में सभी को पछाड़ते हुए प्रदेश का पहला स्वर्ण पदक और सर्टिफिकेट प्राप्त किया था।
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