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तीन माह में एनआरसी में भर्ती हुए 189 बच्चे, टारगेट वेट गेन कर पाए 35 फीसदी

locationश्योपुरPublished: Sep 04, 2018 02:56:52 pm

Submitted by:

Gaurav Sen

भर्ती बच्चों में से 66 ही पहुंच सके टारगेट वेट पर,जिले से सटे शिवपुरी और मुरैना के हाल भी ठीक नहीं

malnutrition affect children

तीन माह में एनआरसी में भर्ती हुए 189 बच्चे, टारगेट वेट गेन कर पाए 35 फीसदी

श्योपुर। सरकार के लाख दावों के बावजूद जिले में कुपोषण का कलंक नहीं मिट पा रहा है। जिले की एनआरसी में अप्रैल से जून तक भर्ती किए गए 189 बच्चों में से केवल ६६ बच्चे ही टारगेट वेट गेन (कुपोषीत बच्चे का वजन बढऩा) कर पाए हैं। 35 प्रतिशत बच्चों को टारगेट वेट गेन करने पर एनआरसी से डिस्चार्ज किया गया। लेकिन १२३ बच्चों किस हाल में रहे इस बात की जानकारी स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में नहीं है। जिले की यह हकीकत संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं की रिपोर्ट से सामने आई है। यह रिपोर्ट जिले में कुपोषण को लेकर किए जा रहे सरकारी दावों की पोल खोल रही है।

श्योपुर जिले की तरह इससे सटे शिवपुरी और मुरैना जिले की रिपोर्ट भी ठीक नहीं है। शिवपुरी जिले में 411 बच्चे विभिन्न पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती किए गए। जिनमें से 181 बच्चे ही कुपोषण से बाहर आ सके। यहां भर्ती किए गए बच्चों में से डिस्चार्ज किए गए बच्चों का प्रतिशत ४४ रहा। इसी तरह मुरैना जिले में262 बच्चे एनआरसी में भर्ती हुए। जिनमें से 152 बच्चे टारगेट वेट गेन कर पाए। यहां डिस्चार्ज बच्चों का प्रतिशत ५८ रहा।
जिले में तीन एनआरसी
श्योपुर जिले में तीन पोषण पुनर्वास केन्द्र हैं। रिपोर्ट के मुताबिक १८९ बच्चे एनआरसी में भर्ती हुए। उल्लेखनीय है कि जिले की कराहल तहसील एक तरह से कुपोषण का केन्द्र बिंदु है। सहरिया जाति बाहुल्य इस क्षेत्र में अधिकांश तय बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बावजूद इसके एनआरसी में कम बच्चे भर्ती होने पहुंचते हैं। तीन माह के यह आंकड़े स्वास्थ्य और महिला बाल विकास के दावों की न केवल पोल खोल रहे हैं बल्कि कुपोषण मिटाने की पहल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।
झोलाछापों पर कराते हैं इलाज
ऐसा भी नहीं है कि सहरिया परिवार को अपने बच्चों की फ्रिक बिल्कुल ही न हो। बीमार होने पर वे बच्चे को डॉक्टर को दिखाते तो जरूर हैं पर सरकारी अस्पताल न आकर आसपास के झोलाछाप या बंगाली डॉक्टरों पर पहुंचते हैं। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर उन्हें यकीन नहीं है, उन्हें हमेशा डर रहता है कि कहीं वे बच्चे को एनआरसी में भर्ती न कर लें।
यह है प्रावधान
प्रावधान है कि हर मां को बच्चे के साथ एनआरसी में 14 दिन रुकना पड़ता है। इसके लिए प्रोत्साहन राशि मिलती है। नियामानुसार एनआरसी से छुट्टी के बाद हर 15 दिन में मां बच्चे के स्वास्थ्य फॉलोअप होता है।ऐसे कुल चार फॉलोअप होते हैं ताकि एनआरसी से छूटने के बाद भी बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर बनी रहे।

एनआरसी में १४ दिन तक बच्चों को भर्ती रखा जाता है। हर बच्चा टारगेट वेट गेन नहीं कर पाता, इसलिए कार्यकर्ता गांव पहुंचकर फोलोअप करता है। दो माह बच्चे फोलोअप पर रहते हैं। एनआरसी में भर्ती रहने के दौरान दो तरह की डाइट दी जाती है।
डॉ.एनसी गुप्ता, सीएमएचओ श्योपुर
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