जिले में रक्तदान के प्रति बीते 17 सालों में एक नई अलख जगी है। वर्ष 2005 में पहला रक्तदान शिविर लगाया गया, जिसके बाद अब न केवल नियमित शिविर आयोजित हो रहे हैं, बल्कि एक साल में शिविरों की संख्या 50 से 60 तक पहुंच रही है। यही वजह है कि शहर सहित जिले भर में रक्तदाताओं की एक लंबी फौज तैयार हो गया है। इनमें 30 लोग तो ऐसे हैं, जो हर तीन माह में रक्तदान करते हैं। इसी के चलते बीते एक दशक में जिले में 40 से अधिक लोग ऐसे लिस्टेड हो चुके हैं, जेा 20 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं।
श्योपुर में रक्तदान क्रांति के जनक गुप्ता
वर्ष 2004 में अपने भाई की आकस्मिक मृत्यु के बाद समाजसेवी महावीर गुप्ता ने रक्तदान के प्रति फैली भ्रांतियों को समाज में दूर करने के प्रयास के तहत वर्ष 2005 में पहला रक्तदान शिविर लगाया और श्योपुर में रक्तदान की एक नई क्रांति पैदा की। यही नहीं स्वयं गुप्ता भी 42 बार रक्तदान कर अन्य के लिए मिसाल बने हुए हैं। वहीं रामलखन नापाखेड़ली, 41वीं बार और दिनेश साहू 40वीं बार रक्तदान कर चुके हैं।
वर्ष 2004 में अपने भाई की आकस्मिक मृत्यु के बाद समाजसेवी महावीर गुप्ता ने रक्तदान के प्रति फैली भ्रांतियों को समाज में दूर करने के प्रयास के तहत वर्ष 2005 में पहला रक्तदान शिविर लगाया और श्योपुर में रक्तदान की एक नई क्रांति पैदा की। यही नहीं स्वयं गुप्ता भी 42 बार रक्तदान कर अन्य के लिए मिसाल बने हुए हैं। वहीं रामलखन नापाखेड़ली, 41वीं बार और दिनेश साहू 40वीं बार रक्तदान कर चुके हैं।
जन्म दिन और पुण्यतिथियों पर लग रहे शिविर
पिछले कुछ सालों में मुकेश गुप्ता स्मृति सेवा न्यास और पुष्पाश्री फाउंडेशन द्वारा अब शहर सहित जिले भर में मतदाता जागरुकता का एक नया अभियान शुरू किया गया है। इसी का परिणाम है कि अब जिले में लोग अपने जन्म दिन, अपनी शादी की सालगिरह, अपने परिजनों की पुण्यतिथि आदि अवसरों पर न केवल स्वयं रक्तदान करते हैं, बल्कि रक्तदान शिविर भी लगाते हैं।
पिछले कुछ सालों में मुकेश गुप्ता स्मृति सेवा न्यास और पुष्पाश्री फाउंडेशन द्वारा अब शहर सहित जिले भर में मतदाता जागरुकता का एक नया अभियान शुरू किया गया है। इसी का परिणाम है कि अब जिले में लोग अपने जन्म दिन, अपनी शादी की सालगिरह, अपने परिजनों की पुण्यतिथि आदि अवसरों पर न केवल स्वयं रक्तदान करते हैं, बल्कि रक्तदान शिविर भी लगाते हैं।
बीसीटी बस भी प्रदेश में अव्वल
श्योपुर में रक्तदान के प्रति बढ़ी जागरुकता का आलम ये है कि यहां जिला अस्पताल में ब्लड बैंक स्थापित हो गई। यही नहीं पिछले साल शासन द्वारा उपलब्ध कराई गई बीसीटी(ब्लड कलेक्शन एवं ट्रंांसपोर्टेशन) बस भी प्रदेश में पहले स्थान पर है। यहां शहर के साथ ही गांवों में भी रक्तदान शिविर लगते हैं, जिसके लिए इसी बीसीटी बस को भेजा जाता है।
श्योपुर जिला पिछड़ा जिला होने के बाद भी यहां रक्तदान के प्रति अच्छी जागरुकता आई है। इसी का परिणाम है कि अब एक साल में 50 से 60 रक्तदान शिविर होते हैं और रक्तदाताओं की एक लंबी फौज तैयार होती है।
अरुण ओसवाल
अध्यक्ष, पुष्पाश्री फाउंडेशन श्योपुर
श्योपुर में रक्तदान के प्रति बढ़ी जागरुकता का आलम ये है कि यहां जिला अस्पताल में ब्लड बैंक स्थापित हो गई। यही नहीं पिछले साल शासन द्वारा उपलब्ध कराई गई बीसीटी(ब्लड कलेक्शन एवं ट्रंांसपोर्टेशन) बस भी प्रदेश में पहले स्थान पर है। यहां शहर के साथ ही गांवों में भी रक्तदान शिविर लगते हैं, जिसके लिए इसी बीसीटी बस को भेजा जाता है।
श्योपुर जिला पिछड़ा जिला होने के बाद भी यहां रक्तदान के प्रति अच्छी जागरुकता आई है। इसी का परिणाम है कि अब एक साल में 50 से 60 रक्तदान शिविर होते हैं और रक्तदाताओं की एक लंबी फौज तैयार होती है।
अरुण ओसवाल
अध्यक्ष, पुष्पाश्री फाउंडेशन श्योपुर