आनंदी माता का रूप महिषासुर मर्दिनी का है। बताते हैं कि यह मंदिर अति प्राचीन है, जिसका ग्वालियर रियासत के समय करीब डेढ़ सौ साल पूर्व नवनिर्माण कराया गया। तब भी यहां पर घोर जंगल होता था तथा मंदिर जमीन की सतह से नीचे था। जहां पर बियावान जंगल होने से शेर भी आया जाया करते थे। इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी के अलावा माता की मूर्ति के ठीक सामने भैरोजी की प्रतिमा है तथा दाहिनी ओर शंकर पार्वती परिवार है। यह भी उतने ही पुराने है जितनी पुरानी माता की मूर्ति एवं मंदिर है। बताया गया है कि पूर्व में नवरात्रा में नवमी की रात्रि को भैंसे की बलि भैरोंजी को दी जाती थी उस समय मां की गर्दन कुछ क्षण के लिये सीधी हो जाती थी। लोगों का मानना है कि अब भी नवमी के दिन कुछ पल के लिए मां की गर्दन सीधी होती है।