सालाना 6.50 करोड़ खर्च, फिर स्वच्छता में नपा फिसड्डी
श्योपुर शहर की सफाई व्यवस्था पर नगर पालिका परिषद सालाना करीब 6.५० करोड़ रुपए खर्च करती है। बावजूद इसके स्वच्छता में नपा फिसड्डी साबित हो रही है। यही वजह है कि नगरीय इकाइयों की रैंकिंग में फेल होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं नगर पालिका ने सफाईकर्मियों के वेतन भत्ते और शौचालयों के रखरखाव पर 3 करोड़ 92 लाख रुपए के अलावा डीजल एवं सफाई सामग्री की खरीद फरोख्त के लिए 2.50 करोड़ रुपए खर्च का प्रावधान बजट में किया है। वहीं स्वच्छता मिशन से नपा को 3.50 करोड़ रुपए की राशि मिलती है। इस बार बजट में स्वच्छता मिशन के लिए २ करोड़ और सामुदायिक शौचालयों के लिए ७० लाख खर्च बताया गया। नपा कागजों में शहर को ओडीएफ घोषित कर चुकी है। इधर देशभर की 4200 नगरीय इकाइयों के लिए भारत सरकार ने जो स्वच्छता सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की। उसमें श्योपुर नगर पालिका 212वें स्थान पर रही। 5 हजार अंकों में से 2019.53 अंक हासिल हुए। भारत स्वच्छता अभियान सर्वे में अच्छे अंक पाने के लिए नगर पालिका ने शहर में होर्डिंग, बैनर पर लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन जब रिजल्ट सामने आया, तो फेल हो गए। इसके पीछे अफसरों की सुस्ती के साथ जनता में जागरूकता की कमी भी रही। यह की थी तैयारी फिर भी हुए फेल वाहनों में जीपीएस, बाजारों में कचरा पात्र आठ स्वच्छता दूत वाहनों की संख्या बढ़ाने के साथ कचरा वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाने का प्लान नपा ने बनाया। इसके अलावा स्वच्छता के तहत शहर के जयस्तंभ, गांधी चौक, मैन बाजार, पुल दरवाजा, टोड़ी बाजार, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सूबात चौराहा सहित बड़े मोहल्लों में कचरा-पात्र रखे बावजूद इसके तैयारी फैल हो गई। सड़क पर कचरा फेंकने पर जुर्माना शहर को स्वच्छ बनाने के लिए नगर पालिका ने सड़क पर कचरा फेंकने वालों पर जुर्माना लगाने की तैयारी भी की थी। लेकिन सड़क पर कचरा फेंकने वालों के खिलाफ हुआ कुछ नहीं। बताते हैं कि ऐसे लोगों पर 250 रुपए से लेकर 500 रुपए तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया था। वहीं खुले में शौच करते पाए जाने पर भी उक्त नियम का लागू किया गया, ताकि लोग खुले में शौच न जाए, लेकिन लोग खुले में शौच अब भी जा रहे हैं। जिम्मेदारी लेने को नहीं कोई तैयार शहर की साफ-सफाई व्यवस्था को लेकर कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है कि हर बार स्वच्छता रैंकिंग में नगर पालिका पिछड़ जाती है। व्यवस्था के नाम पर खर्च करने में अफसर पहले नम्बर पर रहते हैं, लेकिन रैंकिंग रिजल्ट में फेल हो जाते हैं।
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