जिले में जमींदौज हो रही जलप्रबंधन की बेहतर साक्षी बावडिय़ां
किसी समय शहर सहित जिले के आसपास के क्षेत्रों में थी आधा सैकड़ा बावडिय़ां, अब जल संरक्षण के कार्यों में भी बावडिय़ों की उपेक्षा

श्योपुर,
घटते भू जलस्तर को लेकर भले ही शासन-प्रशासन द्वारा जलसंरक्षण के तमाम प्रयास किए जाते हों, लेकिन किसी जमाने में जलप्रबंधन की बेहतर साक्षी रही, ऐतिहासिक बावडिय़ों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। यही वजह है कि संरक्षण के अभाव में शहर सहित आसपास के क्षेत्रों में लगभग आधा सैकड़ों की संख्या में ये बावडिय़ां धीरे-धीरे जमींदोज होती जा रही है।
शहरी क्षेत्र में ही किसी जमाने में आधा दर्जन बावडिय़ां थी, जो शहर के पेयजल का मुख्य स्रोत थी, लेकिन देख-रेख के अभाव में ये बावडिय़ां दम तोड़ रही हैं।
शहर में उत्कृष्ट विद्यालय में दो बावडिय़ों के अलावा ऐतिहासिक किले में चार बावडिय़ां बनी हुई है। इनमें मनोहर बावड़ी का निर्माण सनï्ï 1682 में गौड़ राजा मनोहरदास ने करवाया था। किला क्षेत्र में ही कलंदर शाह की बावड़ी, सोनघटा की बावड़ी, गुलाब बावड़ी तथा किले की प्राचीर के बाहर तिल मिश्री महादेव मंदिर के पास बनी बावडिय़ां धीरे धीरे खंडहर में तब्दील हो रही है। वहीं बड़ौदा क्षेत्र के ग्राम लुहाड़ में 10, गिरधरपुर में 5, सोईंकला में 3 बावडिय़ां भी उपेक्षा का शिकार हैं। इसी प्रकार इसी प्रकार रामेश्वर धाम, ग्राम बर्धा, हलगांवड़ा, चंद्रपुरा, बड़ौदा कस्बे में काशीनाथ जी की बावड़ी और भोगिका मानपुर मार्ग पर बारह गांव की बावड़ी न केवल जीर्णशीर्ण हो चुकी है, बल्कि मिट्टी भराव से पानी भी सूख गया है। इन सबके बावजूद प्रशासन ने अभी तक ध्यान नहीं दिया है।
बीवीजी और काजीजी की बावडिय़ां अद्वितीय
यूं तो शहर सहित जिले भर में अनेक ऐतिहासिक और कलात्मक बावडिय़ां हैं, लेकिन उनमें जिला मुख्यालय स्थित उत्कृष्ट विद्यालय में स्थापित बीवीजी और काजीजी की बावडिय़ां अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। बीवीजी की बावड़ी की कलात्मकता देखते ही बनती है। बताया गया है कि फ्रांसीसी कमांडर जॉन बेपटिस्ट फिलोज ने इस बावड़ी का निर्माण करवाया। जिससे कोठी का बगीचा सींचा जाता था। वहीं उत्कृष्ट विद्यालय के समीप ही पापूजी मोहल्ले में स्थित काजीजी की बावड़ी अपने स्वर्णिम अतीत की गवाही देती है।
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