बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम सैनानी रहे स्व. पाठक ने तो बकायदा शहीद भगत सिंह के आने और कराहल के जंगल में रुकने वाले स्थान को पर्यटन एवं पार्क आदि के स्वरूप में बदले जाने की मांग को लेकर शासन-प्रशासन को कई बार भी पत्र भी लिखे थे। हालांकि अभी यह स्थान गुमनामी का शिकार है, लेकिन कराहल के लोगों के बीच इस वीर नायक की गाथाएं चर्चाओं में आ ही जाती हैं और लोग आज भी आजादी के इस वीर सपूत के अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने और अपनी रणनीति को बनाने के लिए कराहल के जंगल तक में आ जाने की बातें नौजवान और बच्चों को बड़े ही गर्व के साथ बताते हैं।
क्रांतिकारी दयाशंकर से मिलने आए थे भगत सिंह
बताया जाता है कि आजादी के लिए वर्ष 1927-28 में जब आंदोलन चल रहा था, तब कराहल में भी दयाशंकर शुक्ला नाम के एक क्रांतिकारी मौजूद थे। यहां संचालित मिडिल स्कूल के प्रधान अध्यापक के बेटे शुक्ला का वारंट भी निकला हुआ था, बावजूद इसके वह कराहल क्षेत्रमें रहकर अपनी गतिविधियां चलाते थे। अपनी क्रांति को आगे बढ़ाते और अपने इस क्रांतिकारी साथी से मिलने के लिए ही सरदार भगत सिंह कराहल आए थे और यहां के जंगल में दो दिन तक रुके रहे थे। इसदौरान उनके साथ तीन लोग और थे, जिनकी यहां कराहल के जंगल में बैठक भी हुई।
बताया जाता है कि आजादी के लिए वर्ष 1927-28 में जब आंदोलन चल रहा था, तब कराहल में भी दयाशंकर शुक्ला नाम के एक क्रांतिकारी मौजूद थे। यहां संचालित मिडिल स्कूल के प्रधान अध्यापक के बेटे शुक्ला का वारंट भी निकला हुआ था, बावजूद इसके वह कराहल क्षेत्रमें रहकर अपनी गतिविधियां चलाते थे। अपनी क्रांति को आगे बढ़ाते और अपने इस क्रांतिकारी साथी से मिलने के लिए ही सरदार भगत सिंह कराहल आए थे और यहां के जंगल में दो दिन तक रुके रहे थे। इसदौरान उनके साथ तीन लोग और थे, जिनकी यहां कराहल के जंगल में बैठक भी हुई।