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महज 67 क्यूविक मीटर प्रति सेकंड से बह रही चंबल, 35 फीसदी घटी रफ्तार

locationश्योपुरPublished: Jan 16, 2018 03:31:22 pm

Submitted by:

shyamendra parihar

अल्पवर्षा से चंबल में पानी के घटते जलस्तर और बहाव कम होने से खिंची चिंता की लकीरें, घडिय़ाल प्रबंधन ने टेस्टिंग रिपोर्ट शासन को भेजी

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जयसिंह गुर्जर, श्योपुर । पर्याप्त जलराशि से देश की स्वच्छ और समृद्ध मानी जाने वाली चंबल नदी में भी अब जलीय जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अल्पवर्षा और सूखे के चलते चंबल नदी में न केवल पानी घट रहा है बल्कि बहाव की गति भी सामान्य से 35 फीसदी तक कम हो गई है। जिससे जलीय जीव विशेषज्ञों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई।


यही वजह है कि चंबल घडिय़ाल अभयारण्य प्रबंधन ने अपनी रिपोर्ट बनाकर प्रदेश सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून को भेज दी है। बताया गया है कि चंबल के घटते बहाव और जलस्तर के मद्देनजर अभयारण्य प्रबंधन ने डब्ल्यूडब्ल्यूआई के विशेषज्ञों द्वारा एक विशेष उपकरण के माध्यम से चंबल की जलराशि का आंकलन किया। जिसमें पाया गया कि वर्तमान में चंबल का बहाव 67 क्यूविक मीटर प्रति सैकंड ही रह गया। जबकि अमूमन पिछले वर्षों में दिसंबर-जनवरी माह में चंबल का बहाव 106 क्यूविक मीटर प्रति सैकंड के आसपास रहता है। ऐसे में इस बार ये बहाव 35 फीसदी तक कम हो गया है, जिससे चिंतित होना स्वाभाविक है। हालांकि चंबल में कोटा बैराज से पानी भी छोड़ा जा सकता है, लेकिन वर्तमान में जलीय जीवों का अंडे देने का समय है, लिहाजा नदी में अचानक पानी भी नहीं छोड़ा जा सकता है। यही वजह है कि विभाग द्वारा एक्सपर्टों की सलाह ली जा रही है।


घडिय़ालों के लिए चाहिए 164 क्यूविक प्रति सैकंड
शेड्यूल-1 के जलीय जीव घडिय़ालों के संरक्षण के लिए श्योपुर के पाली से यूपी के चकरनगर तक राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण संरक्षित किया गया है, लेकिन यदि चंबल में इसी प्रकार जलराशि घटती रही तो सबसे ज्यादा इसी जीव पर पड़ेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक घडिय़ाल को सर्वाइव करने के लिए पानी का बहाव सामान्यतय 164 क्यूविक मीटर प्रति सैकंड होना चाहिए, लेकिन चंबल में फिलहाल ये रफ्तार नहीं आ रही है। वर्ष 2017 की गणना के मुताबिक चंबल अभयारण्य में 1255 घडिय़ाल, 562 मगर और 75 डॉल्फिन हैं।

हमने पिछले दिनों ही चंबल के पानी की टेस्टिंग कराई है, जिसमें रफ्तार 67 क्यूविक मीटर प्रति सैकंड पाई गई है। निश्चित रूप से ये चिंता का विषय है, इसके लिए हमने अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार और डब्ल्यूडब्ल्यूआई को भेज दी है। साथ ही इस संबंध में एक्सपर्ट्स से भी राय ली जा रही है।
एए अंसारी, डीएफओ, राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य मुरैना

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