पोषणपुनर्वास केंद्रों में भर्ती होने वाले भी बच्चे भी 44 फीसदी कुपोषित
पोषणपुनर्वास केंद्रों में भर्ती होने वाले भी बच्चे भी 44 फीसदी कुपोषित
एक साल में एनआरसी में भर्ती हुए बच्चों में से 56 फीसदी बच्चे ही हो पाए सामान्य, जिले में कुपोषण की स्थिति गंभीर होने के बाद भी एनआरसी भी कुपोषण से नहीं लड़ पा रहे जंग

श्योपुर,
जिले में कुपोषण की स्थिति गंभीर है और इस गंभीर स्थिति से निपटने भले ही अतिकुपोषित बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराया जाता हो, लेकिन जिले में एनआरसी भी कुपोषण पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि स्वास्थ्य विभाग के अंाकड़े स्वयं बयां कर रहे हैं, जिसमें एनआरसी में भर्ती बच्चों में से महज 56 फीसदी बच्चे ही कुपोषणमुक्त हो पा रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जब एनआरसी में ही शत-प्रतिशत बच्चे कुपोषण मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो फिर जिले की स्थिति कैसे सुधरेगी। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018-19 में अप्रेल 2018 से मार्च 2019 तक जिले की तीनों एनआरसी (पोषण पुनर्वास केंद्र) में 1144 बच्चे भर्ती कराए गए। लेकिन इनमें से महज 554 बच्चे ही कुपोषण मुक्त हो पाए। यानि कुल भर्ती बच्चों का 55.87 फीसदी बच्चे कुपोषण की जंग जीत गए, लेकिन 44.13 फीसदी बच्चे कुपोषणमुक्त नहीं हो पाए। जाहिर एनआरसी में भी कुपोषणमुक्त नहीं होने वाले 44 फीसदी बच्चे की स्थिति कितनी प्रतिकूल होगी, ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
यही नहीं जिले की तीनों एनआरसी में बच्चों के कुपोषणमुक्त होने की दर सबसे दयनीय जिला अस्पताल की एनआरसी में है, जहां महज 53.09 फीसदी बच्चे ही सामान्य श्रेणी में आ पा रहे हैं। जबकि विजयपुर में 53.94 फीसदी और कराहल एनआरसी में 60.34 फीसदी बच्चे कुपोषणमुक्त हो पा रहे हैं।
14 दिन तक एनआरसी में किया जाता है भर्ती
श्योपुर जिले में 20-20 बेड की तीन एनआरसी (श्योपुर, कराहल और विजयपुर) संचालित हैं। जिसमें 14-14 दिन के लिए अतिकुपोषित बच्चों को भर्ती कराया जाता है और निर्धारित पोषण आहार के साथ उपचार व प्रतिदिन मेडीकल चेकअप होता है। विशेष बात यह है कि एनआरसी से छुट्टी होने के बाद 2 माह तक स्वास्थ्य विभाग का अमला बच्चों का फॉलोअप भी करता है, बावजूद इसके शत-प्रतिशत बच्चे कुपोषणमुक्त नहीं हो पा रहे हैं।
जिले में कुपोषण की स्थिति गंभीर
कुपोषण के लिए बदनाम जिले में वर्तमान में भी स्थिति गंभीर है। बताया गया है कि लगभग तीन हजार के आसपास बच्चे अभी भी अतिकुपोषण की श्रेणी में है। आए दिन अतिकुपोषित बच्चे महिला बाल विकास विभाग की टीमों को मिल रहे हैं, जिन्हें एनआरसी में भर्ती भी कराया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर जिले में खोले गए डे केयर सेंटर भी बंद पड़े हैं।
एनआरसी में भर्ती रहने के दौरान तो बच्चे का वजन बढ़ जाता है, लेकिन 14 दिन बाद बच्चा घर चला जाता है फिर वही घर का खान-पान होता है, ऐसे में बच्चा कमजोर हो जाता है। चूंकि एनआरसी में भर्ती रहने और फिर घर पर देा माह तक फॉलोअप के बाद कुपोषणमुक्त रेट निकाली जाती है, इस लिए इसका कम परसेंटेज आता है।
डॉ.एनसी गुप्ता
सीएमएचओ, श्योपुर
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