बताया गया है कि इस कार्य में जहां पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ाई जाएगी, जिसमें टॉयलेट्स, पिकनिक हट्स आदि बनाए जाएंगे। वहीं कुंड के आगे बह रही एक छोटी नदी पर अद्ध चंद्राकार ब्रिज बनाया जाएगा, ताकि यहां की सुंदरता बढ़ सके। इससे पूर्व कूनो प्रबंधक देव खो को इको पर्यटन के रूप में विकसित कर चुका है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित भी कर रहा है। विशेष बात यह है कि जो भी विकास होगा, वो पूरा ईको फ्रैंडली होगा। इसके साथ ही पर्यटकों को इन स्थलों को निहारने को बैठने के स्थान बनाए जाएंगे और स्थल की जानकारी देने के लिए साइन बोर्ड लगेंगे। जिस पर संबंधित स्थल की पूरी जानकारी, महत्व तो होगा ही, साथ ही कूनो नेशनल पार्क के बारे में भी जानकारी अंकित होगी।
एक हजार साल पुराना है डोब कुंड क्षेत्र 10 वीं और 11वीं सदी में कच्छपघात राजाओं की राजधानी रहा डोब कुंड लगभग एक हजार साल पुरानी विरासत है। लेकिन उपेक्षा के चलते ये अपनी पहचान खो रहा है। जिले के इस ऐतिहासिक स्थल एक हजार साल पुराने शैलचित्र और प्रतिमाएं आज भी अद्वितीय हैं। लगभग दो किलोमीटर वर्ग क्षेत्रफल में फैले इस नगर के खंडहर इसके समृद्ध और व्यवस्थित नगरी होने का आभास कराते है। जहां दो कुंड भी मौजूद हैं। जिनके चलते इसे डोब कुंड कहा जाने लगा। इन कुंडों की खासियत यह है कि इनकी गहराई अथाह है। बताया जाता है कि भीषण सूखे के दौरान भी इन कुंडों को कभी सूखते नहीं देखा। ग्वालियर के गूजरी महज में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय में डोबकुंड में शासन करने वाली पांच पीढिय़ों का इतिहास मौजूद है।
11 स्थलों का बनाया गया था प्रस्ताव
उल्लेखनीय है कि कूनो वनमंडल ने नेशनल पार्क के बफर जोन में स्थित 11 स्थलों को इको पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। जिसमें देव खो को विकसित किया जा चुका है, जबकि डोब कुंड को अब संवारा जाएगा। इसके साथ ही शेष जो स्थल प्रस्ताव में शामिल हैं, उनमें धोरेट बाबा मंदिर, रणसिंह बाबा मंदिर, आम झिर, नटनी खो, दौलतपुरा, आमेठ का किला, सिरौनी के निकट जैन मंदिर, भंवर खो और मराठा खो शामिल है।
वर्जन
डोब कुंड को विकसित करने की मंजूरी इको टूरिज्म से मिल गई है। देव खो के बाद ये दूसरा स्थल होगा, जिसे हम इको टूरिज्म के रूप विकसित करेंगे। इसके लिए कार्यवाही शुरू कर दी है।
ब्रिजेंद्र श्रीवास्तव
डीएफओ, कूनो वनमंडल श्योपुर