भवन है ही नहीं,फिर भी भेज रहे मेंटेनेंस राशि,कहां खर्च हो
कालूखेड़ली मिडिल स्कूल और चौपना प्रायमरी स्कूल का मामला, स्कूल प्रभारी विभागीय अधिकारियों को कई बार बता चुके है स्थितियां, फिर भी बंद नहीं हो रही मेंटेनेंस राशि,स्कूल प्रभारी को रखनी पड़ रही संभालकर

श्योपुर । बड़ौदा तहसील क्षेत्र का कालूखेड़ली गांव,जहां भले ही शासकीय माध्यमिक स्कूल छह साल से संचालित हो रहा है। लेकिन इस स्कूल के पास अभी अपना स्कूल भवन नहीं है। जिसकारण इस स्कूल के बच्चे प्रायमरी स्कूल के जर्जर भवन में पढऩे को मजबूर हो रहे है। वहीं श्योपुर के तहसील के चौपना गांव के प्रायमरी स्कूल में भी कुछ ऐसी स्थितियां है। यहां भी स्कूल भवन नहीं होने के कारण स्कूल पेड़ के नीचे चल रहा है।
यहां मजेदार बात यह है कि इन दोनों स्कूलों के पास अपना भवन नहीं है। बावजूद इसके,इन स्कूलों में शिक्षा विभाग के अधिकारी हर साल स्कूल भवन मेंटेनेंस के लिए राशि भिजवा रहे है। जिसकारण स्कूल प्रभारी इस बात को लेकर परेशानी में पड़े हुए है कि जब भवन ही नहीं है तो मेंटेनेंस किसका कराया जाए। हालांकि इस बारे में स्कूल प्रभारी कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों को बता चुके है। लेकिन इसके बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी मेंटेनेंस राशि को भेजना बंद नहीं कर रहे है। ऐसे में स्कूल प्रभारियों को मेंटेनेंस राशि संभालकर रखनी पड़ रही है।
कालूखेड़ली में वर्ष 2011 में खुला था मिडिल स्कूल
ग्राम कालूखेड़ली में वर्ष 2011 में शासन के द्वारा शासकीय मिडिल स्कूल खोला गया। तब से लेकर यह स्कूल प्रायमरी स्कूल के भवन में चल रहा है। वर्तमान में भी ये स्कूल जर्जर हो चुकी प्रायमरी स्कूल की बिल्डिंग में चल रहा है। जहां पढ़ रहे दो दर्जन बच्चों को खासी असुविधाएं उठानी पड़ रही है। यहां भवन न होने के बाद भी पिछले छह साल से भवन मेंटेनेंस के लिए 5हजार रुपए के मान से हर साल भेजी जा रही है। जिसे स्कूल प्रभारी संभालकर रख रहा है,जो कि जुडकर 30 हजार हो गई है।
चौपना में तो पेड़ के नीचे चल रहा स्कूल
श्योपुर तहसील के ग्राम चौपना के प्रायमरी स्कूल के लिए भी भवन नहीं है। स्कूल की भूमि पर कब्जे के कारण यहां अभी तक स्कूल भवन नहीं बन सका है। जिसकारण चौपना स्कूल भी पिछले काफी समय से पेड़ के नीचे चल रहा है।जहां ४३ बच्चे पढ़ रहे है। यहां भी हर साल मेंटेनेंस के लिए राशि भेजी जा रही है।
जिले में और भी ऐसे स्कूल
शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों की अनदेखी के ये दो सरकारी स्कूल उदाहरण भर है,क्योंकि जिले में ऐसे और भी कई स्कूल मौजूद है। जहां भी इस तरह की स्थितियां निर्मित हो रही है। मगर जिम्मेदारों को इस तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं है। जबकि कई स्कूलों में मेंटेनेंस राशि कागजों में खर्च करने की स्थितियां भी बन रही है।
भवन नहीं है तो मेंटेनेंस राशि, स्कूल की अन्य जरुरतों पर भी खर्च की जा सकती है। फिर भी इन स्थितियों का पता किया जाएगा।
अजय कटियार, डीइओ,श्योपुर
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