scriptसुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता | Listening to the story of Sudama's character, the audience became over | Patrika News

सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता

locationश्योपुरPublished: Mar 03, 2021 09:51:15 pm

Submitted by:

Anoop Bhargava

– सुदामा चरित्र के साथ हुआ भागवत कथा का समापन

सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता

सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता

ओछापुरा
भैरोबाबा मंदिर पर चल रही भागवत कथा का समापन बुधवार को सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। कथाव्यास हरीश शास्त्री द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए। गोपाल महाराज नोनार सरकार ने भजन सुनाए। कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया।
इधर भागवत कथा में कृष्ण लीलाओं का किया वर्णन
कराहल के सेसईपुरा में नरसिंह भगवान व हनुमान मंदिर पर चल रही भागवत कथा में कथा वाचक पंडित दीपक कृष्ण भार्गव ने भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि कृष्ण के पैदा होने के बाद कंस उनको मौत के घाट उतारने के लिए अपनी राज्य की सर्वाधिक बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है। पूतना भेष बदलकर भगवान श्री कृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण उसको ही मौत के घाट उतार देते हैं। उसके बाद कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन का कार्यक्रम करने की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा उनको भगवान इन्द्र की पूजन करने से मना करते हुए गोवर्धन महाराज की पूजन करने की बात कहते हैं। इन्द्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वह अपने क्रोध से भारी वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं। जिससे हार कर इन्द्र एक सप्ताह के बाद बारिश को बंद कर देते हैं।
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