3 साल से ओटी पर ताला, उजास की आस में 210 किमी धक्के खा रहे मरीज
- जिला अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में नहीं सर्जन, नेत्र सहायक के भरोसे चल रहा विभाग
- ऑपरेशन का लक्ष्य पूरा करने निजी अस्पताल का सहारा

श्योपुर
जिला अस्पताल का नेत्र रोग विभाग जुगाड़ से चल रहा है। तीन साल से क्लास वन चिकित्सक न होने से ऑपरेशन बंद हैं। साथ ही ऑपरेशन थियेटर पर ताला पड़ा है। उजास की आस में पहले मरीजों को शिविर लगने का इंतजार करना पड़ता है। उसके बाद ऑपरेशन के लिए 210 किलोमीटर धक्के खाने पड़ते हैं। स्वास्थ्य विभाग अंधत्व निवारण का लक्ष्य पूरा करने के लिए निजी अस्पताल भरोसे है। सर्जन के अभाव में मोतियाबिंद ऑपरेशन निजी अस्पताल में कराए जा रहा हैं। ऐसे में अंधत्व निवारण कार्यक्रम ठप है और मोतियाबिंद पीडि़त मरीजों को शिविर लगने का इंतजार करना पड़ता है।
स्वास्थ्य विभाग मोतियाबिंद ऑपरेशन का लक्ष्य निजी अस्पताल में ऑपरेशन करा पूरा करने का प्रयास करता है। विभाग द्वारा वर्ष 2019-20 में 1781 मोतियाबिंद के आपरेशन कराए गए। वर्ष 2018-19 में 1847 मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए निजी अस्पताल का सहारा लिया गया। नेत्र सर्जन न होने के चलते स्वास्थ्य विभाग ने ग्वालियर के एक निजी अस्पताल से अनुबंध कर रखा है। निजी अस्पताल की टीम जिला अस्पताल में शिविर लगाकर मोतियाबिंद के मरीजों को ऑपरेशन के लिए चिन्हित कर ग्वालियर ले जाकर ऑपरेशन करती है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा नेत्र सर्जन की तैनाती जिला अस्पताल में नहीं किए जाने से मरीजों को ऑपरेशन के लिए 210 किलोमीटर परेशान होना पड़ रहा है।
शिविर लगने का करना पड़ता है इंतजार
जिले में मोतियाबिंद व आंखों के अन्य ऑपरेशन का काम ठप है। ऐसा भी नहीं है कि, जिले में मोतियाबिंद या आंखों के अन्य बीमारियों के मरीज भी नहीं हैं। कई मरीज है जिनका ऑपरेशन होना है। जिला अस्पताल की ओपीडी में ऐसा कोई दिन बाकी नहीं जाता जब 5 से 10 बुजुर्ग मोतियाबिंद की शिकायत लेकर नहीं पहुंचते हों। लेकिन इन्हें शिविर लगने का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में कुछ लोग राजस्थान के शहरों में जाकर ऑपरेशन करा आते हैं। जो निजी खर्च पर ऑपरेशन नहीं करवा सकते वह शिविर लगने का इंतजार करते हैं।
जिले में परीक्षण के लिए नहीं डॉक्टर, नेत्र सहायक चला रहे विभाग
जिले में आंखों का ऑपरेशन होना तो दूर अब तो परीक्षण के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं हैं। पिछले तीन साल से नेत्र विशेषज्ञ का पद खाली पड़ा है। ऐसे में नेत्र विभाग नेत्र सहायकों के भरोसे चल रहा है। हालत यह है कि आंखों के मरीजों का जो इलाज डॉक्टरों को करना है वह नेत्र सहायक कर रहे हैं। इसमें भी मरीजों को जोखिम उठाना पड़ रहा हैं, ऐसे ही हालत रहे तो कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।
अंधत्व निवारण के लिए लाखों खर्च
स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में अंधत्व निवारण योजना के क्रियान्वयन के लिए लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। एक ओर स्वास्थ्य विभाग द्वारा लोगों को जिले में संचालित शासकीय अस्पतालों की ओर आकर्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है। बावजूद इसके मरीजों को अस्पताल में बेहतर सुविधा नहीं मिल पा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए निजी अस्पताल सहारा लिया जाता है। सरकारी अस्पतालों में यदि कोई मोतियाबिंद या आंखों का ऑपरेशन की शिकायत लेकर पहुंचता है, तो उसे मायूस होकर लौटना पड़ता है।
फैक्ट फाइल
वर्ष ऑपरेशन
2018-19 1847
2019-20 1781
चालू वर्ष अब तक 220
इनका कहना है
जिले में नेत्र रोग विशेषज्ञों का अभाव है। इसके चलते जिले के अस्पताल में मोतियाबिंद ऑपरेशन नहीं हो पा रहे हंै। मोतियाबिंद आपरेशन के लिए ग्वालियर के निजी अस्पताल से एमओयू किया गया है। ऐसे में मोतियाबिंद ऑपेरशन निजी अस्पताल में ही किए जा रहे है। मरीजों को बस के जरिए ग्वालियर भेजा जाता है।
एआर करोरिया
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, श्योपुर
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