scriptत्रिवेणी संगम रामेश्वर में भगवान परशुराम ने की थी तपस्या | Lord Parasurama had done penance in Triveni Sangam | Patrika News

त्रिवेणी संगम रामेश्वर में भगवान परशुराम ने की थी तपस्या

locationश्योपुरPublished: May 07, 2019 02:19:43 pm

Submitted by:

jay singh gurjar

त्रिवेणी संगम रामेश्वर में भगवान परशुराम ने की थी तपस्याश्योपुर जिले के मानपुर क्षेत्र के के त्रिवेणी संगम रामेश्वर पर स्थित भगवान परशुराम की तपोभूमि गुमनामी में

sheopur

त्रिवेणी संगम रामेश्वर में भगवान परशुराम ने की थी तपस्या

श्योपुर,
भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम जिस जगह तपस्या की, वो जगह आज भी गुमनामी में ही है। ये स्थल है रामेश्वर त्रिवेणी संगम, जहां भगवान परशुराम ने तपस्या की थी और अपनी तपोभूमि बनाया था। हालांकि यहां परशुराम घाट बना हुआ है, लेकिन तपोस्थली को अभी भी पहचान की जरुरत है।
मान्यता के अनुसार मातृहत्या के संताप से व्याकुल हुए परशुराम के मन को रामेश्वर धाम में त्रिवेणी संगम के तट पर अनेक वर्षों की घोर तपस्या के फलस्वरूप चिरशांति मिली थी। चंबल नदी के किनारे प्राचीन परशुराम घाट बना हुआ है। इस स्थान पर भगवान परशुराम के पदचिह्न अंकित है। यहीं बैठकर परशुराम ने अपने आराध्य शिव के पंचमुखी शिवलिंग का ध्यान किया था। इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन देव प्रतिमाएं स्थापित है। यही कारण है कि रामेश्वर धाम से सटे श्योपुर मानपुर क्षेत्र तथा राजस्थान के सवाई माधोपुर में अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते है। इस दिन काफी संख्या में लोग परशुराम की पूजा अर्चना करने रामेश्वर तीर्थ पहुंचते है।
लेकिन पहचान की दृष्टि से अभी भगवान परशुराम की तपोस्थली को वो पहचान नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए। हालांकि इसके लिए कई बार मांग भी उठी, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यहां भगवान परशुराम का मंदिर बनना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी भी इस आध्यात्मिक इतिहास से रूबरू हो सके।

तीन नदियों का संगम है रामेश्वरधाम
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर राजस्थान और मध्यप्रदेश के सधिस्थल तथा चंबल, बनास और सीप नदियों के पवित्र संगम पर रामेश्वर धाम व परशुराम घाट स्थित है। इस क्षेत्र के आसपास के इलाके को तपोवन के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र के वन और निर्जन स्थलों पर आज भी पवित्र धूने बने हुए है। जो साधना और तपस्या के बीते युगों की याद दिलाते है। प्राकृतिक सौंदर्य और रमणीयता के चलते यह तीर्थ सदियों से ऋषि-मुनियों के आकर्षण का केंद्र रहा। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के छठवें अवतारमें भगवान परशुराम की गणना होती है। कहा जाता है कि फरसा धारण करने से पहले वे केवल राम कहलाते थे। इसीलिए यह स्थान रामेश्वर धाम हुआ।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो