उन्होंने कहा कि पार्वती कि कठोर तपस्या को देख ऋषि-मुनि भी दंग रह गए। अंत में भगवान भोले का आसन हिला। उन्होंने पार्वती की परीक्षा के लिए पहले सप्तर्षियों को भेजा और पीछे स्वयं वटुवेश धारण कर पार्वती की परीक्षा के निमित्त प्रस्थान किया। जब शिव ने सब प्रकार से जांच-परखकर देख लिया कि पार्वती कि उनमें अविचल निष्ठा हैं, तब तो वे अपने को अधिक देर तक न छिपा सके। वे तुरंत अपने असली रूप में पार्वती के सामने प्रकट हो गए और उन्हें पाणिग्रहण का वरदान देकर अंतर्धान हो गए।