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विभाग के पोर्टल से कुपोषण के आंकड़े गायब

locationश्योपुरPublished: Aug 09, 2020 11:21:37 pm

Submitted by:

rishi jaiswal

जिला अस्पताल की एनआरसी में जुलाई से अब तक इलाज के लिए पहुंचे महज 40 बच्चे
जिले के अन्य पोषण पुनर्वास केन्द्र भी खाली पड़े, विभाग की पोर्टल पर फरवरी तक पोषाहार लाभार्थी दर्ज
 

विभाग के पोर्टल से कुपोषण के आंकड़े गायब

विभाग के पोर्टल से कुपोषण के आंकड़े गायब

श्योपुर. छवि सुधारने के लिए योजनाएं बनाकर लागू करने से ज्यादा सरकारी विभाग आंकड़ों के खेल में उलझे रहते हैं। इसी के चलते कई बार शर्मसार होना पड़ता है।

लेकिन शर्मसार न होना पड़े इसलिए विभाग ने पोर्टल से कुपोषण के आंकड़े ही गायब कर दिए हैं। आंकड़े गायब करने का खेल लंबे समय से चल रहा है, लेकिन कोरोना संक्रमण के बीच पिछले पांच माह से पोषाहार लाभार्थी दर्ज किए जाने के आंकड़े भी पोर्टल से गायब हैं। कुपोषण के मामले में भारत का इथोपिया कहे जाने वाले श्योपुर जिले में कोरोना संक्रमण के दौरान कागजों में बच्चों को पोषित करने का काम किया जा रहा है। जिन एनआरसी में जहां कोरोना संक्रमण से पहले रोजाना 20 से 40 कुपोषित बच्चे भर्ती होते थे वहां इन दिनों पलंग खाली पड़े हैं।
जिला अस्पताल से लेकर कराहल और विजयपुर तक की एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) खाली हैं। एनआरसी पर तैनात कर्मचारियों की मानी जाए तो अभी सिर्फ गंभीर कुपोषित बच्चे एनआरसी तक पहुंचाए जा रहे हैं। शेष बच्चों की निगरानी घर पर ही की जा रही है।
जिले में संचालित 932 आंगनबाड़ी केन्द्रों में फरवरी माह तक छह माह से 3 वर्ष तक के 36 हजार 162 बच्चे पोषाहार के लिए दर्ज किए गए थे। वहीं 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों की यह संख्या 40 हजार 894 थी। यानि इन बच्चों में कुपोषण के लक्षण थे। इस वजह से इनको पोषाहार के लिए दर्ज किया गया। लेकिन फरवरी माह के बाद विभाग की पोर्टल पर न तो इन बच्चों का डाटा है न ही गर्भवती व किशोरी बालिकाओं का। कोरोना संक्रमण के बीच विभाग अपनी पोर्टल को अपडेट करना ही भूल गया है। इसके साथ ही कुपोषित बच्चों को कागजों में दर्ज किया जा रहा है, जिससे आंकड़े सामने न आ सकें। सिस्टम की लाचारी के चलते कुपोषित बच्चे एनआरसी की दहलीज तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग के बीच नहीं है समन्वय
स्वास्थ्य और महिला बाल विकास के बीच समन्वय नहीं होने से एनआरसी तक बच्चे नहीं पहुंच पाते। देखने में यह भी सामने आया कि अभिभावक बच्चों को 14 दिन का एनआरसी कोर्स तक पूरा नहीं कराते। यहां डाइट चार्ट के साथ अटेंडर तक के ठहरने के प्रबंध किए जाते हैं। बावजूद इसके अभिभावक एनआरसी तक बच्चों को नहीं ले जाते। कई बार अभिभावक एनआरसी में बेहतर देखभाल और पोषण आहार ठीक नहीं मिलने की शिकायत भी करते हैं। कुपोषण दूर करने लिए प्रशासनिक स्तर पर कई विभाग निरंतर अभियान चलाते हैं। इसमें न केवल स्कूलों में मध्यान्ह भोजन, आंगनबाडिय़ों में तीन समय डाइट, एनआरसी जैसे कई प्रबंध है। इसके अलावा दस्तक अभियान, टीकाकरण, इंद्रधनुष अभियान तक के प्रयास में कुपोषित बच्चों को तलाश कर एनआरसी पहुंचाने को कहा जाता है, लेकिन इन सबके बावजूद बच्चों का कुपोषण दूर करने को सफलता नहीं मिल रही है। हालात ये रहे कि हर साल कम वजन व अतिकम वजन के मामले बढ़े हैं। इस बार कोरोना संक्रमण के बीच विभाग ने कागजों में अतिकम और कम वजन के बच्चों को लगभग गायब ही कर दिया है।
20 पलंग की एनआरसी में खाली पड़े बेड
जिले में कुपोषण की स्थिति के हिसाब से एनआरसी के पलंग खाली नहीं रहने चाहिए, लेकिन वर्तमान में 20 पलंग के पोषण पुनर्वास केन्द्रों में पलंग खाली पड़े हुए हैं। एक कोरोना संक्रमण का असर है, तो दूसरा कुपोषित बच्चों के अभिभावक एनआरसी आने से कतरा रहे हैं। जिन एनआरसी में रोजाना 20 से 40 बच्चे भर्ती होते थे वह खाली पड़ी हैं। एनआरसी में सिर्फ अतिकुपोषित बच्चों को ही भेजा जा रहा है।
पोर्टल के मेंटेनेंस का काम चलने के कारण डाटा प्रदर्शित नहीं हो रहे हैं। इस समय विभाग मल्टी विटामिन और आयरन बच्चों तक पहुंचा रहा है। साथ ही इस बार लॉकडाउन के चलते ज्यादातर लोग घरों पर रहे और बच्चों की देखभाल की इसलिए कुपोषित बच्चे कम मिल रहे हैं।
ओपी पाण्डेय, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास
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