स्थानीय निवासियों के मुताबिक लगभग पांच सौ साल पहले एक सूफी संत पीर बाबा ग्राम मेवाड़ा में रहते थे और यहां शांति व भाईचारे का संदेश देते थे। शांति व भाईचारे का संदेश देते हुए उन्होंने यहीं जिंदा समाधि ली थी, जिसके बाद उनके अनुयायियों ने उनकी मजार बनाई और तभी से यहां पीर बाबा की पूजा-अर्चना की जाती है। यूं तो गांव के लोग अन्य दिनों में भी पीर बाबा की मजार पर जाते हैं, लेकिन गुरुपूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है। जिसके चलते गुरुपूर्णिमा पर यहां मेवाड़ा के लोग एकत्रित होते हैं, बल्कि वो लोग भी आते हैं जो या मेवाड़ा छोडकऱ बाहर रहे रहे हैं, या फिर यहां के निवासियों के रिश्तेदार हैं। यही वजह है कि गुरुपूर्णिमा के दिन यहां सांप्रदायिक सद्भाव साफ झलकता है।
विशेष भोग लगता है
हिंदू धर्मावलंबियों के प्रमुख त्योहार गुरुपूर्णिमा पर मेवाड़ा में पीर बाबा की मजार पर होने वाले इस आयोजन की खास बात यह है कि यहां मेवाड़ा के हर घर से भोग जाता है और वो भी चूरमा-बाटी का। यही वजह है कि लगभग 300 घरों के ग्राम मेवाड़ा में गुरुपूर्णिमा के दिन चूरमा-बाटी बनाई जाती है और परिजनों के खाने से पहले पीर बाबा की मजार पर भोग लगाया जाता है। यही वजह है कि गांव में गरीब और अमीर सभी चूरमा बाटी बनाकर कूंडा (भोग)चढ़ाते हैं।