दाल-बाटी-चूरमा तो पूरे वर्ष भर बनाया जा सकता है, लेकिन चकती-बाटी केवल सर्दियों के सीजन में भी अपनी महत्ता रखती है। यही वजह है कि हर वर्ग और हर घर में चकती-बाटी सर्दियों में बेहतरीन फूड माना जाता है। चूंकि ये डिस स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी है, लिहाजा जिले में चकती-बाटी ने विशेष पहचान बनाई है, विशेषकर श्योपुर,कराहल और बड़ौदा क्षेत्र में। हालांकि अब चकती को आधुनिक रूप देते हुए आयोजनों में नई रेसिपी से भी बनाया जाने लगा, लेकिन परंपरागत रेसिपी से बनाई जाने वाली चकती-बाटी का लुत्फ अलग ही है।
तिल-गुड़ के मिश्रण से बढ़ जाता है स्वाद
चकती बनाने के लिए चूरमा की तरह ही रेसिपी अपनाई जाती है। लेकिन कुछ खास तरीकों से चकती को पूर्ण बनाया जाता है। गेहूं के मोटे आटे में घी या दूध मिलाकर उसके लड्डू बनाकर कंडों की आग पर सेका जाता है, फिर लड्डुओं को पीसकर उसमें घी, गुड़, तिल , विभिन्न प्रकार का सूखा मेवा आदि मिलाकर मिक्स किया जाता है। इसके बाद ट्रे, थाली या परात में जमाकर ऊपर से शक्कर का हल्का बूरा डाल दिया जाता है। जिससे चकती बाटी बहुत ही विशिष्ट तरह का भोजन बन जाता है।
चकती बनाने के लिए चूरमा की तरह ही रेसिपी अपनाई जाती है। लेकिन कुछ खास तरीकों से चकती को पूर्ण बनाया जाता है। गेहूं के मोटे आटे में घी या दूध मिलाकर उसके लड्डू बनाकर कंडों की आग पर सेका जाता है, फिर लड्डुओं को पीसकर उसमें घी, गुड़, तिल , विभिन्न प्रकार का सूखा मेवा आदि मिलाकर मिक्स किया जाता है। इसके बाद ट्रे, थाली या परात में जमाकर ऊपर से शक्कर का हल्का बूरा डाल दिया जाता है। जिससे चकती बाटी बहुत ही विशिष्ट तरह का भोजन बन जाता है।
तिलचौथ पर विशेष महत्व, लगेगा चौथमात को भोग
यूं तो चकती बाटी सर्दियों के दिनों में विभिन्न आयोजनों में आए दिन बनती है, लेकिन तिलचौथ (जो इस बार आज 5 जनवरी को है) पर चकती-बाटी का ही महत्व है और इस दिन ये हर घर में बनती है। यही वजह है कि आज भी तिल चौथ के अवसर पर शहर सहित जिले के हर घर में चकती बाटी का भोग चौथ-माता को लगाया जाएगा।