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इस स्थान पर हुआ था राम-सीता का पुनर्मिलन, तभी से लगता है मेला

locationश्योपुरPublished: Nov 12, 2019 02:46:22 pm

Submitted by:

jay singh gurjar

तीन नदियों के संगम स्थल के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी अद्वितीय है जिले का रामेश्वर त्रिवेणी संगम, भगवान राम और सीता का हुआ था पुनर्मिलन, कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है मेला

इस स्थान पर हुआ था राम-सीता का पुनर्मिलन, तभी से लगता है मेला

इस स्थान पर हुआ था राम-सीता का पुनर्मिलन, तभी से लगता है मेला

श्योपुर,
जिले का एकमात्र प्रसिद्ध तीर्थ स्थल यूं तो तीन नदियों का मिलन होने से त्रिवेणी संगम कहलाता है, लेकिन जिले में अपने आप में अद्वितीय ये स्थल धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक पर्यटन का भी त्रिवेणी संगम है। यही वजह है कि यहां कार्तिक पूर्णिमा पर तो वार्षिक मेला लगता है, इसके अलावा भी वर्ष भर कई आयोजन होते रहते हैं।
यूं तो रामेश्वर धाम केा लेकर कई किवदंतियों और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, लेकिन सबसे बड़ी मान्यता है कि अयोध्या से भगवान राम द्वारा माता सीता का परित्याग करने के बाद रामेश्वर में ही भगवान राम और सीता का पुनर्मिलन हुआ था, तत्समय सभी देवी-देवताओं ने पुनर्मिलन पर पुष्पवर्षा की थी। मान्यता है कि तभी से यहां कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है और श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान को पहुंचते हैं। यही नहीं रामेश्वर वो तपोभूमि है, जहां भगवान परशुराम ने भी तपस्या की थी। मातृहत्या के संताप को लेकर उन्होंने यहां छह माह तपस्या की थी। राजस्थान की सीमा में परशुराम घाट के पास ही एक मूर्तिविहीन मंदिर बना है, जिसे परशुराम कुटी कहा जाता है।
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर पावन सलिला सीप, चर्मण्यवती (चंबल) एवं बनास नदियों का प्रत्यक्ष त्रिवेणी संगम है रामेश्वर जो राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य की भी ये अहम कड़ी है। विशेष धार्मिक पर्वों पर यहां भारी संख्या में श्रद्घालुजन पूजा अर्चना करते हैं तथा त्रिवेणी संगम पर स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं,लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के स्नान का अलग ही महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां तीन दिवसीय मेला लगता है।
मेले में दिखती है लोक संस्कृतिक की झलक
कई धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक मान्यताओं के चलते अब रामेश्वर धाम धीरे-धीरे देशव्यापी नक्शे पर आ रहा है। यही वजह है कि पिछले कई सालों से तो कार्तिक पूर्णिमा पर तो श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। चतुर्दशी की अद्र्घरात्रि से पूर्णिमा के दिन तक हजारों की संख्या में लोग इस पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं। इस प्रसिद्घ मेले में यहां की विभिन्न रंगों से युक्त राजस्थानी संस्कृति तथा श्योपुर क्षेत्र के सहरिया आदिवासियों की सुंदर लोकगीतों व मस्ती भरे लोकनृत्यों से परिपूर्ण सहरिया संस्कृति की झलक नजर आती है।

यह भी है खास
-राजस्थान की सीमा में आस्था का प्रमुख केंद्र है श्री चतुर्भुजन नाथ मंदिर।
-श्योपयुर की सीमा में वर्षों पुराने हैं रामेश्वर महोदव, हनुमान जी और श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर।
-मान्यता है कि कभी रामेश्वर में 84 मंदिर हुआ करते थे।
-तीन सौ वर्ष पुरानी एक प्राचीन बावड़ी भी स्थापित।
-महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण की अस्थियों का विसर्जन भी रामेश्वर त्रिवेणी संगम में हुआ था।

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