श्योपुर

पानी न मिलने से धावा गांव से पलायन कर रहे लोग

पिछले दस दिन के भीतर दो दर्जन करीब परिवारों ने किया गांव से पलायन, गांव में पिछले एक साल से बना हुआ है पानी का संकट

श्योपुरFeb 23, 2018 / 02:17 pm

Gaurav Sen

हेमंत भारद्वाज/कराहल. ननावद पंचायत के बाल्या का टपरा गांव के खाली हो जाने के बाद अफसर आज तक भी उसका कारण नहीं तलाश सके हैं, वहीं इसी तरह की परिस्थितियों में अब एक और गांव खाली होना शुरू हो गया है। हम यहां बात कराहल तहसील के धावा गांव की कर रहे हैं, जहां पिछले करीब आठ माह से पानी का संकट है और ग्रामीण कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं हो सका है।

जिसके बाद अब ग्रामीण गांव से पलायन कर बाहर जाने लगे हैं। ग्रामीणों की माने तो ६० परिवारों की संख्या वाले इस गांव में वर्तमान में महज २० करीब ही परिवार शेष बचे हैं। करीब ४० परिवार पानी और रोजगार की समस्याओं से हारकर गांव छोड़ गए हैं। क्योंकि गांव में इन दोनों का ही अभाव है, पानी की समस्या का तो यह हाल है कि लोग पिछले एक साल के भीतर पांच बार तो जन सुनवाई में कलेक्टर के पास जाकर गुहार लगा आए हैं। मगर समाधान के तौर पर गांव में कराए गए बोर चल ही नहीं पा रहे हैं। क्योंकि उनको चलाने के लिए जनरेटर चाहिए, जिसके लिए पंचायत खुद के पास पैसा न होने की बोलकर उसका संचालन करती नहीं है और ग्रामीणों के पास भी इतना पैसा नहीं है कि वह जनरेटर चलाकर पानी भर सकें। लिहाजा लोग दो किमी दूर केरका और तीन किमी दूर मौजूद आवदा बांध से पानी लाकर प्यास बुझाने को विवश हो रहे हैं।

47 में से 20 करीब रही बच्चों की संख्या
गांव में मौजूद हालात की पुष्टि शासन के स्कूल और आंगनबाड़ी के इन आंकड़ों से भी की जा सकती है। जिसके तहत धावा गांव के स्कूल में कक्षा1 से 5वीं तक 47बच्चे दर्ज होना बताए गए हैं, मगर अब स्कूल में 15 से 20 बच्चे ही आ रहे हैं। स्कूल शिक्षक बताते हैं कि शेष बच्चे परिजनों के साथ बाहर चले गए हैं, आंगनबाड़ी केन्द्र पर भी दर्ज बच्चों की संख्या तो 63 है, पर आजकल 15 से20 बच्चे ही आ रहे हैं, यह भी इसके पीछे कारण वही बच्चों का बाहर चला जाना बता रही हैं।
 

खाने का प्रबंध नहीं डीजल को कहां से लाएं
धावा गांव में इन दिनों शेष रहे ग्रामीण रामदीन आदिवासी, चकराम, बाबू, काडू, गुजर््या, दौज्या आदि बताते हैं के अफसर तो चाहे जो कै देवें। पर पैसाऊ तो होनो चैइए। झें तो कछु कामई नई है, जैसे तैसे इते बिते मजदूरी कर करा के पेट पालवे की व्यवस्था कर पावें। अब बा में ते जनरेटर कूं का दे देवें।

पंचायतों में डीजल के लिए किसी तरह का कोई फण्ड नहीं आता है। यदि ग्रामीण खुद डीजल की व्यवस्था करे तो में पंचायत को बता कर जनेटर रख सकते हंै। पर पानी के लिए पैसा तो ग्रामीणों को ही एकत्रित करना होगा।
बीबी श्रीवास्तव , एसडीएम कराहल

अब गांव में तो मवेशी और हम जैसे बुजुर्ग रह गए हैं, ज्यादातर युवा तो गांव छोड़ गए हैं, क्योंकि यहां पर पानी ही नहीं मिल पा रहा है।
रामकिषन पटेल
आंगनबाड़ी में सहायिका दाखा बाई केरका गांव से पानी भरकर लेकर आती है, तब बच्चों को मध्याह्न भोजन के बाद पानी पीने को दे पाते हैं।
आरती, आगनबाड़ी कार्यकर्ता
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